कामरूप की मायावी स्त्रियाँ करती थीं पुरुषों का शोषण ,एक रहस्यमय सच्ची कहानी

हर हर महादेव! प्रिय पाठकों,कैसे है आप लोग,

आशा करते हैं कि आप सकुशल होंगें 

भगवान शिव आपको सदैव प्रसन्न रखे 


कामरूप तिरियाराज असम का पहला ऐतिहासिक राज्य है। यह एक ऐसी रहस्मय जगह है जहाँ पर केवल सुंदर स्त्रियों का शासन है। इस गांव के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। 

कामरूप की मायावी स्त्रियां (जादूगरनियां)करती थीं पुरुषों का शोषण ,एक रहस्यमय सच्ची कहानी

दोस्तों!कहते हैं कि जो भी इस गांव में गया वो आज तक वापस नहीं आया। इस गांव में केवल महिलाएं और पशु पक्षी रहते हैं। पुरुषों का तो नामो निशान भी नहीं है। इस गांव की सभी स्त्रियॉँ तंत्र मंत्र में बहुत अधिक विद्वान है। इसका एक प्रमुख उदाहरण है काम्यक वन की हिडिम्बा राक्षसी। महाभारत ग्रंथ के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं।

कामरूप की जादूगरनियां करती थीं पुरुषों का शोषण ,एक रहस्यमय सच्ची कहानी


पांडवों के वनवास काल मे जब भीम को काम्यक वन के राजा हिडिंब ने अपना बंधक बना लिया था। लेकिन हिडंब की बहन हिडिम्बा परम सुंदरी थी और वो मायावी शक्तियां भी बहुत अच्छे से जानती थी। 

उसने भीम को कहीं दूर जंगलों में ले जाकर छुपा दिया और वहाँ अपनी मायावी शक्तियों, तंत्र मंत्र और टोने टोटकों से उसे अपने वश में कर लिया। उसने भीम को अपनी योग माया के जाल में फंसा कर पराजित कर दिया।और अपनी जादुई शक्ति से भीम को अपने वश में करके उसके साथ प्रेम संबंधों से घटोतकच को जन्म दिया। 

तिरिया राज कामरूप की इस मायावी जादूगरनी का पुत्र घटोत्कच मायावी वीर पराकर्मी था जिसने अकेले ही महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना पर हाहाकार मचा दिया। इसके अलावा भी दोस्तों और ना जाने इतिहास में कितने ही ऐसे किस्से इस मायावी जादू नगरी तिरिय राज के बारे में आपको मिल जायेंगे। 

दोस्तों! हो सकता है कि कुछ लोग इस कहानी को मिथक माने,झूठ समझे या फिर ना ही विश्वास करें लेकिन क्योंकि हम पीढ़ियों से ये कहानी सुनते आ रहे हैं इसलिए सोचा कि क्यों न आपके साथ इस रहस्य को साझा करें। 

बात उस समय की है जब अंग्रेजों का शासन था। एक छोटे से जमींदार थे। व्यापार के सिलसिले में उन्हें एक बार उनका कामरूप माया नगरी असम जाना हुआ। वह किसी विशेष व्यापार के सिलसिले में वहाँ गए थे। 

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उस समय यात्राएं बड़ी लम्बी होती थी क्योंकि आने-जाने के इतने ज्यादा साधन नही थे।और यही कारण हे की यात्राओं से काफी दिनों बाद ही वापसी होती थी।

वैसे तो उस जमीदार का विदेश आना-जाना लगा रहता था ,यात्रायें होती ही रहती थी। पर एक बार जिस दिन उस जमीदार को असम जाना था उस दिन उसकी धर्मपत्नी को घबराहट हो रही थी। इसलिए उसने जमीदार से कहा कि आप कोई रक्षा ताबीज़ बनवा लीजिएगा, क्योंकि इस बार पता नहीं क्यों मुझे अंदर से बहुत घबराहट हो रही है।

दोस्तों! आज भी पतिव्रता स्त्रियों के मन में कुछ अनहोनी होने से पहले घबराहट हो ही जाती है। अगर कोई स्त्री सच में पतिव्रता स्त्री है तो उसे अनुभव हो ही जाता है कि उसके पति के ऊपर कोई ना कोई संकट आने वाला है।और उस वक्त की स्त्रियाँ तो पराये पुरुषों को देखती तक नहीं थी, इसलिए उनके अंदर सतीत्व की शक्ति पूरी तरह विद्यमान थी। 

तो जमीदार ने जब अपनी पत्नी को घबराते और परेशान ,चिंतित देखा तो उन्होने अपनी पत्नी से कहा कि, तुम व्यर्थ ही चिंता करती रहती हो? माना की मुझे बहुत दूर जाना है, लेकिन यह कोई परेशानी वाली बात नहीं है। 

सभी लोग जानते हैं कि व्यापारी अगर दूर की यात्रा नहीं करेगा तो फिर कमाएगा क्या और खाएगा क्या? इसलिए मुझे जाने दो, हाँ तुम्हारी बात को ध्यान में रखकर अवश्य ही मैं माता के दरबार में सबसे पहले जाऊंगा।

और उन्होंने घर वालों से रजामंदी लेकर यात्रा आरंभ की। वह असम में माँ कामाख्या के शक्तिपीठ पर जाकर मत्था टेकने वाले थे। जब वे वहाँ पहुंचे तभी एक वृद्ध स्त्री उनके पास आई। 

उसके शरीर को देखकर ऐसा नहीं  लगता था कि वह कोई तपस्वी है,लेकिन उसके सिर के बाल एक बरगद की लटकती हुई जड़ों के सामान दिखाई दे रहे थे। जिस कारण ऐसा लगता था कि वह केवल तपस्या ही करती है। 

जमीदार ने उनको नमस्कार किया और उनके चरण छुए। सहज भाव से ही उनके मन में उस स्त्री के प्रति प्रेम और आदर था। जमीदार ने माता कहकर उन्हें संबोधित किया। तब उस स्त्री ने जमीदार से कहा कि,मुझे भूख लग रही है, क्या मुझे तुम भोजन करवा सकते हो? 

तब जमीदार ने कहा मैं एक धनवान जमींदार हूँ, इसलिए मेरे लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है।मेरे सेवक आपके लिए अभी भोजन लेकर आएँगे और जमीदार के साथ गए हुए बहुत सारे सेवक उनके लिए विभिन्न प्रकार के भोजन और सामग्रियां लेकर आ गए। 

उस भोजन को खाने में उन वृद्ध माता ने 1 मिनट भी नहीं लगाया और सारे के सारे भोजन को समाप्त कर दिया और कहा कि मुझे अभी तृप्ति नहीं मिली है। मुझे अभी भी भूख लग रही है। क्या तुम मुझे और भोजन करवा सकते हो? 

वह जमीदार बहुत चतुर था इसलिए वह तुरंत समझ गया कि-यह कोई साधारण स्त्री नहीं है और इसलिए उन्होंने तुरंत ही उनके पैर पकड़कर कहा, माता मेरी सामर्थ्य ऐसी नहीं है कि मैं आपको भोजन करवा पाऊं। आप बस उतना ही ग्रहण कीजिए,जितने मे आपकी भूख शांत हो जाए और मुझे भी संतुष्टि हो जाए। 

तब उस बुढ़ी माता ने कहा, बेटा तेरे पास जो एक फल रखा है, तू उस फल को मुझे दे दे। जमीदार ने वह फल निकालकर उन देवी को दे दिया। जिसे खाते ही उनकी भूख शांत हो गई। ये देख कर जमीदार आश्चर्यचकित रह गया और उसने उस माता से पूछा कि- 

हे माता! मेरे सेवकों ने आपको इतना कुछ खाने के लिए लाके दिया जिससे की 7,8 लोगों का पेट भर जाए। पर उस भोजन से आपको संतुष्टि नही मिली और केवल एक फल खाते ही आपकी भूख मिट गई। ऐसा क्यों माता?

इस पर वह माता बोली- बेटा! जो भोजन मैंने खाया, वो तुम्हारे सेवकों ने मुझे लाकर दिया, लेकिन एक फल तुमने मुझे खुद अपने हाथों से दिया इसलिए मेरी भूख शांत हो गई। 

तुम्हारे सेवक मुझे यदि मुझे पूरे नगर का भोजन क्यों न लाकर दे देते,लेकिन मुझे उससे तृप्ति नहीं मिलती। क्योंकि किसी भी कार्य मे खुद का समर्पण होना जरूरी होता है। 

मैंने भोजन के लिए आग्रह तुमसे किया, लेकिन तुमने आदेश अपने सेवकों को दिया। इसलिए इनके भोजन से मैं संतुष्ट नहीं हुई। 

इसपर जमीदार ने उस बुढ़ी माता से पूछा हे माता! आप कौन है? आप कोई साधारण स्त्री नहीं जान पड़ती। यदि आपको कोई तकलीफ न हो तो क्या मैं आपका परिचय पा सकता हूं?

जमीदार की बात सुनकर बुढ़ी माता ने उत्तर दिया कि, मैं एक सिद्ध भैरवी हूँ। जमीदार ने असमंजस मे पड़ते हुए पूछा- माता सिद्ध भैरवी क्या होता है? 

बुढ़ी माता ने उत्तर देते हुए कहा कि बेटा! मैंने कठोर तपस्या से पहले योगिनी पद हासिल किया। उसके बाद अब तपस्या कर भैरवी पद हासिल किया है। इसलिए अब मैं बहुत ज्यादा शक्तिशाली व सिद्धिवान हो चुकी हूँ और चूकी तुमने मुझे भोजन कराया है इसलिए मैं हमेशा तुम्हारी रक्षा करूंगी। 

वैसे तो तुम्हारे चेहरे को देखकर मैंने एक रहस्य जान लिया है किन्तु अभी मैं उसमे कोई हस्ताक्षेप नहीं कर सकती और न उसके बारे मे मैं अभी तुम्हें कुछ बता सकती हूं। 

किन्तु इतना समझ लो बेटा कि, आगे आने वाला समय तुम्हारे लिय बड़ा कठिन है,इसलिए यदि तुम्हें कभी मेरी आवश्यकता पड़े तो तुम इस मंत्र का जाप करना, जो तुम्हें मैं अब दे रही हूँ। 

इस मंत्र के उच्चारण करते ही मैं तुम्हारी सहायता के लिए वहाँ तुरंत प्रकट हो जाऊँगी। इतना कहकर बुढ़ी माता ने जमीदार के कान मे एक मंत्र बोला और वहां से चली गई। जमीदार ने उस मंत्र को याद कर लिया और अपने सेवकों के साथ आगे यात्रा शुरू की। 

अभी कुछ ही कदम चले थे कि उन्हें एक व्यक्ति मिला और आगे जाने के लिए मना करने लगा। कहने लगा कि आप लोग आगे मत जाइए। यह निलाअंचल पर्वत है। यह स्थान रहस्यों से भरा पड़ा है। 

आप जिस रास्ते पर चल रहे है, इस रास्ते पर आगे एक जंगल है और उस जंगल मे आज तक जो भी गया है ,वह वापस लौट कर नहीं आया। इसलिए आप भी इस रास्ते से आगे न जाए। इतना कहकर वह व्यक्ति वहां से चला गया। किन्तु जमीदार ने उस व्यक्ति की बात को अनसुना कर दिया और आगे की तरफ बढ़ चला। 

थोड़ा आगे चलने पर उन्हें वहीं जंगल मिला, जिसके बारे मे उस व्यक्ति ने बताया था। वे लोग उस जंगल मे बढ़ते चले जा रहे थे। थोड़ा और आगे चलने पर उन्हें पालकी मे आती हुई कुछ सुन्दर स्त्रियां दिखाई दी। 

कामरूप की जादूगरनियां करती थीं पुरुषों का शोषण ,एक रहस्यमय सच्ची कहानी


उन स्त्रियों को देखकर सभी सेवक इधर-उधर हटने लगे, लेकिन जमीदार नहीं हटा। वो सभी स्त्रियां इतनी सुन्दर थी कि , जमीदार उनके चेहरों को एकटक निहारता रहा।जब वह स्त्रियां थोड़ा पास आई तो पालकी मे से एक स्त्री ने अपना सिर बाहर निकाला और कहा कि, आगे से हट जाओ, कौन हो तुम ?

लेकिन जमीदार नहीं हटा। उसे उन स्त्रियों की सुंदरता के आगे कुछ भी सुनाई व दिखाई नहीं पड़ रहा था। अचानक वहां एक रहस्यमय घटना घटी। देखते ही देखते वह स्त्रियाँ,जमीदार और उसके सेवक उस जगह से एकदम से गायब हो गये।

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थोड़ी देर बाद जब उन्हें होश आता है तो अपने सामने के नजारे को देखकर उनके होश उड़ गये। उनके सामने एक बहुत बड़ा विशालकाय नगर था। जो कि अपने आप मे इतना अद्भुत, रहस्यमय और दैवीय लग रहा था कि- उसके आगे स्वर्ग भी फीका लग रहा था। 

जमीदार बहुत आश्चर्य में था क्योंकि उसके आगे एक नही, दो नही बल्कि अनेक सुन्दर स्त्रियां थी और उन सभी स्त्रियों के साथ एक- एक पुरुष बंधक रूप मे था।फिर कुछ देर बाद जमीदार ने उसी स्त्री को देखा जो उसे पालकी मे दिखाई दी थी।

वह स्त्री जमीदार के पास आई और बोली चलो, आज से तुम मेरा कार्य करोगे। जो मैं तुमसे कहूँगी ,तुम वही करोगे। तुम एक खूबसूरत पुरुष हो इसलिए तुम मेरे अधीन रह कर मेरी इच्छा की पूर्ति करोगे। 

उस पालकी वाली मायावी स्त्री ने एक ऐसा मंत्र पढ़ा कि वह जमीदार एक बकरे रूप मे बदल गया। खुद को बकरे के रुप मे देखकर वह आश्चर्यचकित हुआ और एक बात अच्छे से समझ गया कि यह स्त्री कोई साधारण स्त्री नही,ब्लकि जादू-टोने वाली एक मायावी स्त्री है। 

उस स्त्री के मंत्र से जमीदार पूरी तरह से उसके वश में हो चुका था और वह अपनी पिछली जिंदगी को भी भूल चुका था। अब वह जमीदार वही करता, जो वह स्त्री कहती। 

जमीदार को आधा बकरा और आधा इंसान बना कर वह अपने साथ ले गई और उससे एक दास की तरह काम करवाने लगी। वह खुशी-खुशी सभी काम करता रहा। जब करने के लिए कोई कार्य नही रहता तो वह स्त्री उसे पूरा बकरा बना देती। 

एक दिन उस स्त्री के मन मे सम्भोग की इच्छा जागृत हुई। इसलिए उसने अपनी उस इच्छा को पूरा करने के लिए जमीदार से कहा कि, देखो आज मैं तुम्हें कुछ देर के लिए पूरा इंसान बना रही हूँ। 

इस रूप मे तुम मेरे पति बनोगे और तुम मुझसे प्रेम करोगे और अपने प्रेम से मुझे संतुष्ट करोगे। इतना कहकर वह बिस्तर पर लेट गई और उसने जमीदार को इतना वशीभूत कर दिया कि, वो जैसा चाहती, उससे उसी प्रकार प्रेम करवाती। 

कामरूप की जादूगरनियां करती थीं पुरुषों का शोषण ,एक रहस्यमय सच्ची कहानी


और वह खुद भी जमीदार  की इच्छानुसार उसे अपनी रंगरेलियां दिखाती हुई उससे प्रेम करने लगी। अपनी अदाएं दिखाने लगी। उसके प्रेम करने का तरीका बड़ा ही विचित्र था। जिसे शब्दों मे बता पाना सम्भव नहीं। दोनों काम के वशीभूत हो एक-दूसरे के प्रेम मे खो गए। 

इस तरह उस दिन से वह जमीदार दिन मे बकरा बन कर उस मायावी स्त्री के लिए काम करता और रात मे इंसान बनकर उस स्त्री की कामवासना को पूरा करता। इसी तरह दिन बीतते गए। दिन मे वह स्त्री उसे आधा बकरा और आधा इंसान बनाकर और उसके गले में रस्सी बाँध कर उसे घुमाती, काम करवाती। 

एक दिन की बात है पूर्णिमा की रात थी। इस रात मे उस नगर की सभी जादूगरनी स्त्रियाँ अपने अपने बंधक बने पुरुषों को घास चराने के लिए एक जगह इकट्ठी हुई। इस रात मे वे जादूगरनी स्त्रियां एक-दूसरे के साथ अपने-अपने बकरों की अदला-बदली करती और उनसे उसी प्रकार प्रेम सम्बंध बनाती जिस तरह मायावी स्त्री ने जमीदार के साथ बनाए। 

ये स्त्रियाँ कभी कोई कार्य नही करती थी। हर कार्य वो अपने बकरे बने पुरूषों से कराती थी। इस प्रकार यह क्रम चलते 11 वर्षं बीत गए। जमीदार को अभी तक कोई होश नही था। उसकी याददाश्त अभी तक वापस नही आई थी। 

इधर उस जमीदार की पत्नी का बुरा हाल था। वह बहुत परेशान थी। क्योंकि कोई भी व्यक्ति व्यपार के उद्देश्य से बाहर जाता था, तो वो 1 वर्ष के अंदर लौट आता था। पर यहां तो जमीदार को गए 11 वर्ष बीत चुके थे। इसलिए उसका मन व्याकुल हो रहा था। उन्हें किसी अनहोनी का एहसास हो रहा था। 

मन मे उठ रहे डर को शांत करने के लिए और अपने पति की तलाश करने के लिए उसने अपने घर के सदस्यों के साथ कामाख्या माँ के मंदिर चलने के लिए कहा। घर के सदस्य इस बात के लिए राजी हो गए। और अगले दिन सुबह ही मंदिर के लिए निकल पड़े। 

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मन मे पति के मिलने की आस को लेकर जमीदार की पत्नी परिवार सहित कामाख्या माँ के मंदिर पहुंची।वहां उन्होंने माँ के दर्शन किए। जमीदार की पत्नी ने माँ से प्रार्थना की, कि हे माँ! मेरे पति की रक्षा करें। उन्हें जल्द ही घर वापस भेज दें। और उसके बाद वह मंदिर के बाहर एक सीढ़ी पर बैठ गई। उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। 

रोते-रोते आधी रात बीत गई। तब उसे मंदिर में आती हुई वहीं बुढ़ी औरत दिखाई दी, जो जमीदार को इसी मंदिर मे मिली थी। उन्होंने जमीदार की पत्नी को रोते हुए देखा तो उसके पास जाकर बैठ गई और बोली- क्या बात है बेटी क्यों रो रही हो?तब जमीदार की पत्नी ने सारी बात उन बुढ़ी माता को कह सुनाई। 

बुढ़ी माता को तुरंत सारी बात समझ आ गई। वो जान गई की ये उसी जमीदार की बात कर रही है जिसने मुझे भोजन कराया था। उन माता ने उसकी पत्नी को धैर्य बंधाते हुए कहा- बेटी धर्य रखो,मैंने तुम्हारें पति को देखा है। 

उसने इसी मंदिर मे मुझे भोजन कराया था। मैंने उसे आने वाली मुसीबत के बारे में चेतावनी भी दी थी और बचाव के लिए एक मंत्र भी दिया था। मैं तुम्हारे पति की मदद जरूर करती ,पर अफसोस की अभी तक उसने मुझे याद नहीं किया। 

ये सुनकर जमीदार की पत्नि बोली- माता मेरे पति ठीक तो होंगे न। उनपर ऐसी कौन सी मुसीबत आ गई माँ, जो वो अभी तक लौट कर नहीं आए। मेरा मन बहुत घबरा रहा है।

वृद्ध माता बोली बेटी! घबराने की कोई जरूरत नही।नारी शक्ति मे बहुत ताकत होती है। तुम अपने सतीत्व की शक्ति का प्रयोग करो। जमीदार की पत्नि ने कहा, पर कैसे माँ। मैं कैसे अपने सतीत्व का प्रयोग करूँ? 

तब वह वृद्ध माता बोली बेटी! तुम अपनी तर्जनी उँगली का रक्त माता कामाख्या को अर्पित करो। माँ से अपने पति की सलामती के लिय दुआ करो। उनसे कहो कि जिस प्रकार मेरे शरीर मे ये रक्त बह रहा हैं, मेरे शरीर मे कही भी रुकावट नही है,मैं अपनी सतीत्व की शक्ति से अपने पति को सभी ब्रह्म शक्ति से दूर करती हूँ? ऐसा करने से तुम्हारे पति की याददाश्त 1 दिन के लिए वापस आ जाएगी।

वृद्ध माता के कहे अनुसार जमीदार की पत्नी ने माँ कामाख्या को रक्त अर्पित कर अपनी मन्नत कही। जिसके प्रभाव से जमीदार की याददाश्त वापस आ गई।याददाश्त वापस आने पर जब उसने खुद को आधे बकरे और आधे इंसान के रूप मे देखकर हैरान हो गया और वह सोचने लगा कि अरे! ये मैं कहाँ हूं?,ये कौन सी जगह है?

अभी वो ये सब सोच ही रहा था कि उसने उसी मायावी स्त्री को देखा जो पालकी मे बैठी थी। उसे देखकर जमीदार को सब सब समझ आ गया। वह समझ गया कि इसी के कारण मैं सबकुछ भूल चुका था। 

सबकुछ जानने और समझने के बाद उसने सोचा कि यहां से बचकर निकलने का केवल एक ही तरीका है कि मैं पहले की तरह ही व्यावहार करूँ और मौका पाते ही यहां से निकल जाऊँ। और वह सबकुछ जानने के बाद भी अंजान बना रहा और पहले की भांति काम करते हुए अपने वापस लौटने का मार्ग ढूंढने लगा। 

बहुत कोशिश करने के बाद भी वह उस मायावी नगरी से बाहर निकलने का रास्ता नही ढूंढ पाए। तो वो वापस उसी मायावी स्त्री के पास लौटआए। उस मायावी स्त्री ने जमीदार को पूरा इंसान बना दिया और बोली चलो,अब वापस चलकर हम पहेले की तरह आज भी प्रेम करें। और न चाहते हुए भी जमीदार को वो सब करना पड़ा, जो वह स्त्री कहती जा रही थी। 

प्रेम करने के बाद उसने जमीदार को फिर से बकरा बना दिया। जब वह स्त्री सो गई,तब जमीदार ने सोचा ये मौका अच्छा है। तो वह रास्ता ढूंढने के लिए फिर से निकल पड़ा। ढूँढते ढूंढते रास्ते मे उसे एक घर के बाहर एक बकरा दिखाई दिया। 

वो उस बकरे के पास गया और उससे उस जगह से बाहर निकलने का रास्ता पूछने। ये सुनकर उस दूसरे बकरे ने रास्ता बताने की जगह उसे वही रहने की सलाह देने लगा।कहने लगा कि- तुम यहाँ से बाहर जाने के बारे मे कैसे सोच सकते हो। अगर तुमने ऐसा किया तो मैं अपनी मालकिन को सबकुछ बता दूँगा। 

पहले बकरे ने सोचा ये तो पूरी तरह अपनी मालकिन के वशीभूत है। य़ह मेरी बात ऐसे नहीं मानेगा। मुझे कोई दूसरा तरीका ढूंढना पड़ेगा। तो उसने उस दूसरे बकरे से दोबारा पूछा- अच्छा भाई एक बताओ तुम्हारी मालकिन, मेरी मालकिन और ये अन्य स्त्रियां जो यहाँ रहती है, ये यहाँ से बाहर दूसरी दुनिया मे कैसे जाती है।

तब उस दूसरे बकरे ने डांटते हुए उत्तर दिया- अरे! तुम मुर्ख हो क्या,तुम्हें बात समझ मे क्यों नहीं आती। भी कुछ दिन बाद ये सभी स्त्रियां एक जगह इकट्ठी होंगी। 

जिस जगह ये इकट्ठी होंगी,वहीं उनके सामने एक पेड़ होगा,और उसी पेड़ मे एक रहस्यमय दरवाजा खुलता है जिससे ये बाहर जाती है। लेकिन दरवाजा कुछ क्षणों के लिए ही खुलता है। जिससे बाहर जाना असंभव है। 

कामरूप की मायावी स्त्रियाँ करती थीं पुरुषों का शोषण ,एक रहस्यमय सच्ची कहानी

पता नहीं तुम यहाँ से जाना क्यों चाहते हो,ये स्वर्ग जैसी जगह तो मुझे बहुत अच्छी लगती है। मैं तो अपनी मालकिन की सेवा करके बहुत खुश हूँ। अभी थोड़ी देर बाद रात हो जाएगी और मेरी मालकिन मुझे पुरुष बना देगी और फिर बहुत प्रेम करेगी। ऐसे प्रेम को छोड़कर भला कौन जाना चाहेगा। इसलिए मैं तो यहां से कभी नहीं जाऊँगा। 

अब पहले बकरे को यह बात अच्छी तरह समझ आ गई कि जादुई स्त्रियों के प्रभाव से इस जगह को छोड़ कर कोई नहीं जा पाएगा। फिर चाहे वो बकरा बना रहे या पुरुष। यहां तो केवल एक मैं ही हूँ, जिसके ऊपर इन जादुई स्त्रीयों के मन्त्रों का असर नहीं है। 

बकरे बने जमीदार को ,जादुई मायावी स्त्रियों के एक जगह इकट्ठे होने का इंतजार करते-करते दो दिन बीत गए। तीसरे दिन वे सभी जादुई स्त्रियां अपने-अपने बकरों को लेकर उसी पेड़ के पास आकर इकट्ठी हुई ,जिसके बारे मे दूसरे बकरे ने जमीदार को बताया था।

पेड़ के पास पहुंच कर वह स्त्रियाँ वहां नाचने लगी। शायद वो इन जादूगरनीयों का कोई त्योहार था,जिसके बारे मे कोई नहीं जानता था। और कोई जानता भी कैसे? क्योंकि सभी मनुष्य जादुई मायावी स्त्रीयों के वश मे जो थे। केवल एक जमीदार ही था इस समय कि जिसके ऊपर कोई मंत्र असर नही कर रहा था।

जमीदार ये सब बड़े ध्यान से देख रहा था। उसने देखा कि सभी स्त्रियां नृत्य करने मे मग्न है। किसी का भी ध्यान बकरों पर नहीं है। उसने सोचा यही मोका अच्छा है यहाँ से निकलने का। पर निकलूँ कैसे? मुझे तो रास्ता ही नही पता। काश- मुझे रास्ता पता होता। 

इस प्रकार जमीदार मन मे विचार कर ही रहा था कि,उसे पेड़ पर एक दरवाजा खुलता दिखाई दिया। जमीदार चौंक गया। उसने उस द्वार से एक स्त्री को अपने साथ एक बकरा बने पुरुष को लाते देखा। वह समझ गया कि हो न हो, यहाँ से बाहर जाने का यही रास्ता है। 

जब द्वार से आई स्त्री बाकी स्त्रियों के पास पहुंची तब, उन स्त्रियों मे से एक स्त्री बोली। बहुत बढ़िया, बहुत सुंदर बकरा पकड़कर लाई है। अब मैं भी अपने  इसकी बलि एक नया बकरा लेने जा रही हूं क्योंकि मैं अब अपने इस  बकरे से बोर हो चुकी हूं। इसलिए अब मैं इसकी बलि चढ़ाने जा रही हूं। 

जादूगरनी बकरे को उसी पेड़ के पास ले गई और तेज़ धार की तलवार से उसका सिर काट डाला। जिसे देखकर जमीदार डर गया। वो समझ गया कि ये सब बकरे और मैं इन जादूगरनीयों के केवल मनोरंजन के साधन है। जब तक इनका जी चाहेगा ये पास रहेंगी और मन भर जाने पर हत्या कर देंगी। 

लेकिन प्रश्न ये उठता है दोस्तों! की जादूगरनी मायावी स्त्रियों के मन भर जाने पर पुरुषों को मारने की क्या जरुरत थी। वो सब उन्हें ऐसे ही अपने वश मे करके छोड़ सकती थी या फिर अपना सेवक भी बना सकती थी। 

हाँ दोस्तों! बिल्कुल कर सकती थी। पर ये जादूगरनीयाँ तांत्रिकी स्त्रियां थी। कामवासना की पूर्ति के समय इन्हें पुरुषों की ऊर्जा प्राप्त होती थी ,जिससे ये अधिक बलशाली हो जाती थी। यही कारण है कि मन भर जाने पर ये पुरूषों की बलि चढ़ा देती थी। 

जिस समय वो बलि चढ़ाती थी उसके तुरंत बाद ही वो उसी पेड़ के द्वार से बाहर की दुनियां में दूसरे पुरुष की तलाश मे निकल जाती थी। और पुरुष मिल जाने पर उसे बकरा बना कर ले आती। उसके अंदर आते ही पेड़ का द्वार फिर से बंद हो गया। बस इतने ही समय मे कोई अंदर से बाहर और बाहर से अंदर आ,जा सकता था। 

इस तरह से ये मायावी स्त्रियां पुरषों को लाती और फिर से उनके साथ वहीं क्रियाएं दोहराती जैसा जमीदार भुगत रहा रहा था। और दिनबदिन शक्तिशाली होती जाती। 

अब चूँकि द्वार तो बंद हो गया था तो जमीदार बाहर कैसे निकलता। लेकिन सारी प्रक्रिया देखने के बाद जमीदार को निकलने का रास्ता मिल गया। वह अब अगली पूर्णिमा की रात का इंतजार करने लगा। 

आखिरकार जमीदार का इंतजार खत्म हुआ। पूर्णिमा की रात आई और वह सभी मायावी स्त्रियाँ उसी पेड़ के पास अपने-अपने बकरों को लेकर इकट्ठी हुई। जमीदार को भी उसकी मालकिन आकाशमार्ग से लेकर उसी पेड़ के पास पहुंची। 

बाकी सभी मायावी स्त्रियां अपने बकरों के साथ चलकर ही उस पेड़ तक पहुंची केवल दो तीन ही मायावी स्त्रियां थी जो उड़कर उस स्थान तक पहुची थी। जिसमें की जमीदार की मालकिन भी शामिल थी। इससे जमीदार ने अंदाजा लगाया कि उसकी मालकिन ज्यादा शक्तिशाली है। और वह जल्दी से उसे छोड़ेगी नहीं। 

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खैर, निकलना तो है।ये सोचकर जमीदार मौके का इंतजार करने लगा। जैसे ही उनमे से एक मायावी स्त्री ने उस पेड़ के सामने बकरे को लेजाकर उसकी बलि दी, वैसे ही दरवाजा खुल गया। और वह मायावी स्त्री उस पेड़ से नए पुरुष की तलाश के लिय निकलने लगी। 

जैसे ही उस मायावी स्त्री ने पेड़ के द्वार के अंदर प्रवेश किया, वैसे ही उस बकरे ने निकलने के लिए तेजी से छलांग लगाई। लेकिन उसकी मालकिन यानी मायावी स्त्री ने अपनी ऊर्जा शक्ति से उसे अपनी तरफ खींच लिया। जिससे बकरा बाहर नहीं जा पाया।

उस स्त्री ने जमीदार को पकडा और कहा- तू यहां से बाहर जाने की सोच भी कैसे सकता है और तू मेरे वश से बाहर कैसे निकल गया। मैं अभी तुझे फिर से पूरी तरह अपने वश में करती हूं। 

जमीदार निराश और दुःखी होकर सोचने लगा कि अब वह इस स्थान से कभी बाहर नहीं जा पाएगा। लेकिन तभी उसे मंदिर वाली भैरवी देवी का ध्यान आया। जिससे वह माँ कामाख्या के मंदिर मे आते समय मिला था और उन्हें भोजन भी कराया था। 

उसे ध्यान आया कि भैरवी देवी ने उन्हें एक मंत्र दिया था और कहा था कि तुम जब भी इस मंत्र का उच्चारण करोगे और मुझे पुकारोगे तो मैं तुम्हारी मदद के लिये आ जाऊँगी। 

जमीदार ने बिना देरी किए उस भैरवी देवी को पुकारा लेकिन जैसे ही वह मंत्र का उच्चारण करने जा रहा था कि, उस मायावी स्त्री ने जमीदार को फिर से सबकुछ भुला दिया। उसकी याददाश्त पहले की ही तरह हो गई। वह सबकुछ भूल गया। और फिर वह मायावी स्त्री जिस प्रकार जमीदार के ऊपर बैठकर उड़कर आई थी  उसी प्रकार से वापस चली गई। 

वापस पहुंचने के बाद उसने फिर से जमीदार को समागम करने की इच्छा से मानव रूप मे बदल दिया। उससे पहले की वह उस स्त्री के साथ कुछ करता, वहां भैरवी देवी प्रकट हो गई। 

देवी ने उसके सिर पर अपना हाथ फिराया जिससे कि जमीदार की याददाश्त वापस आ गई। याददाश्त आते ही उसने देवी को प्रणाम किया और हैरानी से पूछा माँ! आप यहां ? और मैं यहां कैसे आ गया।

भैरवी देवी ने उत्तर देते हुए कहा- मैं यहाँ तुम्हारी पत्नी के कहने पर आई हूँ। और तुमने मुझे याद करने मे कितनी देर कर दी। 

जमीदार रोने लगा और उनके चरणों मे गिर कर क्षमा मांगी और कहने लगा- माँ आप मुझे यहां से बाहर निकाल दो क्योंकि यहां ये स्त्री मेरा शारीरिक और मानसिक शोषण करती हैं। मुझे अधिक पीड़ा देती है। 

भैरवी देवी ने कहा- बेटा! तुम घबराओ नहीं। मैं तुम्हें यहां से बाहर निकालने ही आई हूँ। तुम्हारी पत्नी कामाख्या माँ के मंदिर मे बैठी तुम्हारे लिए प्रार्थना कर रही हैं। तुम्हें अब कुछ नहीं होगा। और भैरवी देवी ने जमीदार का हाथ पकड़ा और उसी पेड़ के पास पहुंच गई जिसमे बाहर जाने का रास्ता था। 

वहाँ पहुँच कर उन्होंने जमीदार को एक मंत्र दिया और कहा कि,तुम यहाँ बैठकर इस मंत्र का जाप करो। कुछ देर मे ही इस पेड़ का द्वार खुल जाएगा। बस एक बात याद रखना चाहे कुछ भी हो जाए, तुम्हें मंत्र जपते रहना है,बीच मे रुकना नहीं है। 

द्वार के खुलते ही जप करते-करते तुम्हें उसके अंदर जाना हैं। जब तुम द्वार में प्रवेश करोगे तो तुम्हें बहुत सी माया रोकने का प्रयास करेंगी। उनसे तुम्हें बचना है। इसलिए मैं तुम्हें ये ताबीज़ दे रही हूँ। जिससे कि कोई माया तुम्हें रोक न पाए। लेकिन मायाजाल को पार करना तुम्हारी जिम्मेदारी है। सबकुछ समझाकर भैरवी देवी उसी पेड़ के रास्ते से अपनी वास्तविक दुनिया मे चली गई। 

इधर जमीदार जाप करने लगा। थोड़ी देर बाद पेड़ का द्वार खुला और जमीदार ने जप करते-करते उसके अंदर प्रवेश करने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही उसने द्वार पर कदम रखने वाला था कि मायावी स्त्री आ पहुंची और उसे अपनी तरफ खींच कर रोते रोते कहने लगी। 

तुम मुझे ऐसे छोड़कर कैसे जा सकते हो, तुम मेरे पति हो, मैं तो तुम्हें कितना अधिक प्रेम करती हूं। तुम तो ये अच्छी तरह जानते हो। बहुत जल्द मैं यहां की मालकिन बनने वाली हूँ। और तुम यहां के राजा। फिर भला तुम यहाँ से बाहर क्यों जाना चाहते हो,बोलो? 

मैं तुमसे वादा करती हूं की मैं अब तुम्हें कभी बकरा नहीं बनाऊँगी, तुमसे कोई भी काम नही करवाऊंगी,पर तुम मुझे छोड़कर मत जाओ। लेकिन जमीदार जप करता रहा। कुछ नहीं बोला।

उस मायावी स्त्री ने जब देखा कि इस पर मेरी बातों का कोई असर नहीं हो रहा, तब उसने एक आखिरी चाल चली। उसने एक कि जगह चार पेड़ बना दिए, जो दिखने मे एकसमान थे। चारो पेड़ों के द्वार खुले थे और उन सभी द्वारों मे से जमीदार की पत्नि की चिल्लाने की आवाज़ आने लगी। 

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अब जमीदार घबराने लगा। लेकिन जप करना नही छोड़ा।उसके सामने चार पेड़ पेड़ थे और चारो पेड़ों मे से उसकी पत्नी के चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी। वह सोचने लगा कि अगर गलती से भी उसने किसी गलत द्वार पर पैर रख दिया तो,वो हमेशा के लिए यही रह जाएंगे। 

लेकिन जमीदार ने जैसे- तैसे धैर्य रखा और एक बार फिर से मन ही मन भैरवी देवी को पुकारा। पुकारते हुए भैरवी देवी प्रकट तो गई लेकिन वह भी चारो पेड़ों पर दिखाई दे रही थी। और कह रहीं थीं कि मेरी और आओ, मेरी और आओ। 

जमीदार समझ गया कि ये मायाजाल है इसलिए उसने जप करते-करते भैरवी देवी के दिए ताबीज को अपने माथे से लगा लिया। भैरवी देवी ने जमीदार को असमंजस मे देखा तो उन्होंने सच्चाई दिखाने के लिए अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली मे एक छेद किया जिससे कि रक्त बहने लगा। 

जब जमीदार ने ये देखा कि केवल एक पेड़ की ही भैरवी देवी के हाथ से खून बह रहा हैं, तो वह समझ गया कि यही पेड़ असली है और यही देवी असली है क्योंकि मायावी चीजों मे कभी जीवन नहीं होता,आत्मा नहीं होती।इसलिए भैरवी देवी की उँगली से निकला रक्त केवल उसी पेड़ पर गिरा, जो कि असली था।बाकी किसी भी पेड़ के द्वार पर रक्त नहीं लगा। 

अब जमीदार ने बाहर निकलने मे जरा भी देर नहीं लगाई वह उसी द्वार से बाहर निकल गया ,जिसमें रक्त लगा था। बाहर निकल कर वह सीधा माँ कामाख्या के मंदिर मे पहुंचा,जहां उसकी पत्नि उसके लिए प्रार्थना कर रही थी।

इस तरह से एक पतिव्रता स्त्री और देवी की शक्ति से वह जमीदार हमेशा हमेशा के लिए उस नर्क से वापस लौट आया था 

तो प्रिय पाठकों! ये थी हिमालय की मायावी स्त्रीयों की रहस्यमयी कथा। आशा करते हैं कि आपको कहानी पसंद आई होगी। ऐसी ही सत्य और प्राचीन कथाओं के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी। तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहें, मुस्कराते रहें और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहे। 

धन्यवाद 

हर हर महादेव, जय श्री राम 


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