श्री रंग जी का बिना मरे यमदूत से मिलना (दौसा के भक्त की सच्ची कहानी -2004 की घटना) )

आज हम आपको एक ऐसी कहानी के बारे में बता रहे है जिसके बारे में यकीन करना संभव नहीं है लेकिन हाँ !जो भगवान् को मानते है ,भरोसा करते है यो शायद जरूर यकीन करेंगे। 

ये कहानी 100 %सच्ची है। और गीताप्रेस की किताब में भी इस कहानी के बारे में चर्चा की हुई है अथार्त लिखी हुई है। ये कहानी हम मनुष्यों को सचेत करती है कि हमे अपनी जीवन को किस प्रकार संस्कारी बनाना चाहिए। तो चलिए बिना देरी किये पढ़ते है ये आज की ये सत्य एवं रोचक ज्ञानपूर्ण कथा। 

हर -हर महादेव प्रिय पाठकों !

कैसे है आप लोग 

आशा करते है की भगवान् शिव की कृपा से आप सकुशल होंगे। 

मित्रों !एक बार की बात है वैश्यकुल में उत्पन्न सेठ श्री रंगनाथ जी ,जो की जयपुर दौसा गांव के रहने वाले थे और अनंतानंद जी के परम भक्त थे।

श्री रंग जी का बिना मरे यमदूत से मिलना (दौसा के भक्त की सच्ची कहानी -2004 की घटना) )

श्री रंगनाथ जी के घर में एक नौकर था। जो की स्वभाव से अत्यंत दुष्ट प्रवर्ति का था। ऐसा कोई भी पाप कर्म नहीं था जो उसने न किया हो।जब वो मरा तो यमराज के पास पहुंचा। यमराज ने उसको वहां यमदूत की नौकरी दे दी अथार्त जो काम यमदूतो का होता (प्राण हरना )वहीँ काम उसको दिया। 

यमराज ने एक बार अपने यमदूतों को आज्ञा दी की तुम दोसा गांव में जाओ और वहां के वैश्य के प्राणो को हर के मेरे पास लेकर आओ।  आज्ञा पाकर दूत दोसा गांव में पहुंचे और जैसे ही दूत दोसा गांव में पंहुचा तो उसे याद आया की ये तो वहीँ स्थान है जहां में रहता था। सेठ रंगनाथ के घर में तो मैं नौकरी किया करता था। वो कितने सज्जन इंसान है। क्यों न मैं उस बंजारे को मारने से पहले श्री रंगनाथ जी से मिलता चलूँ। ऐसा विचार कर वह रंगनाथ जी के घर पंहुचा। 

रात का समय था श्री रंगनाथ सोने के लिए जा रहे थे। बिस्तर पर बैठे ही थे की उन्होंने अपने नौकर को देखा। उन्हें बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने अपने नौकर से कहा  की -अरे मैंने तो सुना है की तु मर गया है तो फिर तू यहां कैसे आ गया। इस पर  नौकर ने कहा हाँ मालिक !आपने ठीक ही सुना है। मैं मर चुका हूँ। अब मैं यमदूत हूँ ,यहां मैं बंजारे को लेने आया हूं। 

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रंगनाथ जी ने कहा लेकिन बंजारा तो अभी पुरी तरह से स्वस्थ है। कुछ समय पहले वो यहां से सामान लेकर अपने घर गया है। नौकर बोला की मालिक मुझे पता है। मैं उसके बैल के सींघ पर बैठ जाऊँगा। जिससे काल प्रेरित वह बैल उसके पेट में सींघ घुसाकर उसका पेट फाड़ देगा। 

तब रंगनाथ ने नौकर से कहा की, क्या तुम सबके साथ ऐसा ही व्यवहार करते हो। यमदूत ने कहा कि ,नहीं मालिक ! ऐसा सिर्फ उन लोगो  के साथ करता हूँ। जो पापी होते है तथा दुष्कर्म करते है। भगवान् के भक्तों की और तो हम देख भी नहीं पाते। मैं तो आपको सलाह देने आया हूँ ,कि जो जीवन आपका बाकी बचा है ,उसे भगवान् की भक्ति की ओर लगा लो। 

मैंने आपका नमक खाया था ,इसलिए मेरे मन में ये भाव आया था की मैं सचेत करता चलूँ कि जितना जीवन आपका शेष बचा है ,उसे आप परमात्मा की  भक्ति में लगा दो। यदि आपको मेरी बात पर विश्वास न हो तो आप मेरे साथ बंजारे के घर चल कर देख लो। मैं केवल आपको ही दिखाई दूंगा और  किसी को नहीं दिखाई दूंगा। जो जो बात मैंने आपको बताई है ,उसी प्रकार वो घटना वहाँ घटित होगी। 

पहले तो श्री रंगनाथ जी को इन बातों पर विश्वास नहीं हुआ। तब रंगनाथ ने पूछा कि ,क्या तुम सबको ऐसे ही लेकर जाते हो। इस पर यमदूत (नौकर) ने कहा की नहीं ,जिसका जैसा कर्म होता है ,उसी के अनुसार उसको दंड मिलता है। 

ये कह कर यमदूत बंजारे के प्राण हरने के लिए उसके घर गया।यमदूत के कहने पर श्री रंगनाथ जी भी बंजारे के घर गए। वहाँ जाकर रंगनाथ जी ने देखा कि बंजारा अपने बैल को भूसी खिला रहा था और बैल जोर -जोर से अपना सिर हिला रहे थे ,जिस कारण बंजारे को उन्हें भूसी यानी चारा ,घास आदि खिलाने में परेशानी हो रही थी। बंजारे के कई बार कोशिश की बैलों को अपने हाथ से खाना खिलाने की, पर वह नाकाम रहा। इस पर बंजारे को क्रोध आ गया और उसने बैल के दोनों सिंघों को जोर से पकड़ लिया। ठीक उसी समय यमदूत बैल के सींघ पर जाकर बैठ गया। अब तो काल के वश में होने के कारण बैल ने गुस्से में आकर बंजारे पर सींघो से ऐसा आक्रमण किया की उसका पेट ही फट गया। उसकी आंतें बाहर निकल आई और वह मर गया। 

जब रंगनाथ जी ने ये सारी घटना देखी ,तो उन्हें यकीन नहीं हुआ और वो मन ही मन सोचने लगे की यह कैसी प्रेरणा है कि ,अचानक ये यमदूत आते है और काल की प्रेरणा से जीव के प्राण निकाल देते है। ये सारी घटना देखकर श्री रंगनाथ जी के मन में डर बैठ गया। वो यमदूत से कहने लगे कि ,बताओ मेरा कल्याण किस प्रकार होगा ,मैं किस तरह मरूंगा। 

यमदूत ने कहा ,इस समय श्री कृष्ण भक्त अनंता नन्द जी दुनिया के महान संत है। आप उनके पास जाओ। वह आपका कल्याण कर देंगे। मित्रों !कहते है की  यमदूत की  बात सुनकर  रंगनाथ जी ने अपना सबकुछ त्याग कर भक्त अनंता नन्द जी की शरण में चले गए। उनकी शरण में रहते -रहते रंगनाथ जी के मन भक्ति का भाव बढ़ता चला गया। 

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एक दिन भक्त अनंता नन्द जी ने श्री रंगनाथ जी से कहा की ,अब तुम अपने घर वापस चले जाओ और वहाँ जाकर भक्ति का प्रचार करों। आज्ञा पाकर रंगनाथ जी वापस अपने घर आये और भगवान् की भक्ति का प्रचार करने लगे। वे लोगो को भगवान् की कथाये ,महिमा आदि के बारे बताने लगे। 

एक बार रंगनाथ जी का पुत्र रात  में विश्राम कर रहा था। तभी उसको एक प्रेत दिखाई दिया। वह प्रेत बड़ा ही भयंकर था। वह प्रेत उसको परेशान करने लगा। परेशान होकर वह अपने पिता रंगनाथ जी के पास गया और कहने लगा कि ,पिताजी मुझे एक प्रेत परेशान कर रहा है। वो बार -बार मुझे दिखाई देता है।  मुझे बड़ा डर लग रहा है। वो बार -बार बस एक ही बात कह रहा है कि ,मेरा कल्याण कर दो। बताइये न पिताजी ,मैं क्या करूँ। 

अपने पुत्र की बात सुनकर श्री रंगनाथ जी बोले की ,बेटा आज तुम यहीं मेरे स्थान पर सो जाओ और मैं तुम्हारे स्थान पर सो जाऊँगा। बेटे ने कहा कि ,ठीक है पिता जी। जब श्री रंगनाथ जी अपने बेटे के कमरे में सो रहे थे की ,उस प्रेत ने आकर उनको भी परेशान करना शुरू कर दिया। 

तब श्री रंगनाथ जी क्रोध में आकर उसे श्राप देने जा रहे थे। लेकिन जैसे ही उन्होंने प्रेत को श्राप  देने के लिए अपना हाथ उठाया ,तभी प्रेत दीनता से बोल उठा की हे नाथ !मुझ पर कृपा कीजिए। मैं आपका नाम सुनकर आपकी शरण में आया हूँ। मेरी जाति के सभी लोग आपकी शरण में आकर अपना जीवन सुधार चुके है। आप कृपया मुझ पर भी कृपा कीजिए ,मेरा कल्याण कीजिए। 

प्रेत की बात सुनकर भक्त रंगनाथ जी ने प्रेत से कहा कि ,तुम्हे प्रेत योनि कैसे मिली। तब उस प्रेत ने बताया की हे नाथ !मैं जाति से सुनार हूँ। मैंने पराई स्त्री से पाप सम्बन्ध बनाया। इसी कारण मुझे ये योनि प्राप्त हुई। अपने उद्धार का उपाय जानकार मैं आपकी में आया हूँ। अब आप मेरा उद्धार कीजिए। 

प्रेत की दीनता ,करुणामई वाणी सुन कर रंगनाथ जी को दया आ गई। उन्होंने श्री राम नाम का जल लेकर उस प्रेत के ऊपर फैंक दिया। प्रेत उस जल के पड़ने के कारण एक दिव्य रूप में बदल गया और रंगनाथ जी का धन्यवाद करके ,भगवान् के धाम में चला गया। 

मित्रों ! इसी प्रकार भक्त रंगनाथ जी ने अनेको जीवों  का  उद्धार किया। यह सत्य घटना हमे सचेत करती है की जो परमात्मा के भक्त होते है। उनके सामने यमदूत आकर उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। अपितु उन्हें उनके कल्याण का मार्ग बताते है जैसे उनके नौकर ने यमदूत बनकर उन्हें उनके कल्याण का रास्ता दिखाया। 

इसलिए हे मनुष्य रुपी प्राणीयों !हम सभी को चाहिए की हम सब का जितना भी जीवन बाकी बचा  है  ,उसे भगवान् के अधीन कर दे, उनकी भक्ति में खो जाये , उनकी सेवा में लग जाए। सबसे बड़ी बात तो यह है की भगवान् के मार्ग में चलने से यमराज ,यमदूत और मृत्यु से कभी डर नहीं लगेगा। भगवान् की भक्ति में पड़ने से जीवन की सारी परेशानियों से आसानी से मुक्ति मिल जाती है। 

ऐसा बिलकुल भी नहीं है की ,भगवान् के भक्तों को दुःख ,कष्ट आदि का सामना नहीं  करना पड़ता। करना पड़ता है ,लेकिन भक्ति के मार्ग पर चलने से वो रास्ता आसान हो जाता है ,उस दुःख ,तकलीफ कष्ट को हम आसानी से पार कर जाते है। 

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प्रिय पाठकों!आशा है करते हैं कि आपको कहानी पसंद आई होगी।विश्वज्ञान मे आपको ऐसी ही सत्य एवं रोचक भक्तिपूर्ण ,शिक्षाप्रद कहानियाँ मिलती रहेंगी।विश्वज्ञान मे अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी,तब तक के लिये हँसते रहिये,मुस्कुराते रहिये और प्रभू का स्मरण करते रहिये।

धन्यवाद 

जय-जय श्री राधे-कृष्ण 

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