🙏🏻🥀सच्चे गुरु कौन होते है?/क्या सच्चे गुरु की महिमा अपार है?/क्या गुरु बिना मुक्ति मिल सकती है?/गुरु शब्द का क्या अर्थ है?🥀⚘🙏🏻

VISHVA GYAAN

हर हर महादेव!- प्रिय पाठकों ,भगवान शिव का आशीर्वाद आप सभी को प्राप्त हो।

🙏🏻🥀सच्चे गुरु कौन होते है?/क्या सच्चे गुरु की महिमा अपार है?/क्या गुरु बिना मुक्ति मिल सकती है?/गुरु शब्द का क्या अर्थ है?🥀⚘🙏🏻


🙏🏻🥀गुरु कौन होते है?/क्या गुरु की महिमा अपार है?/क्या गुरु बिना मुक्ति मिल सकती है?/गुरु शब्द का क्या अर्थ है?🥀⚘🙏🏻
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🙏गुरु शक्ति अपार🙏


भविष्य में इस बात का हमेशा याद रखना की या तो आप जीवन मे कोई गुरु न बनाये ,खुद शुद्धता और सच्ची भक्ति के साथ भगवान की आराधना (पूजा -पाठ )करें। और अगर गुरु बनाये तो सोच समझ कर बनाये ।

भगवान् श्री कृष्ण जी ने भी गीता में कहा है की ----सच्चे गुरुओ की दृस्टि संसार में समस्त प्राणियों यानी मनुष्यो के लिए उनके हित की होती है। न की उनको अपनी तरफ खींचने की। वो न तो किसी को अपना शिष्य बनाते है ,और न किसी से कुछ लेते है। वो तो हर पल दुसरो के कल्याण के बारे में ही सोचते है। अपने कल्याण के बारे में नहीं। 


इस पोस्ट में आप पाएंगे 

गुरु शब्द का अर्थ

सच्चे गुरु की पहचान 

ऐसे गुरु,महात्मओं से बचे।

गुरु महिमा अपार

गुरु में स्थित चार गुण 


🙏🏻🥀गुरु कौन होते है?/क्या गुरु की महिमा अपार है?/क्या गुरु बिना मुक्ति मिल सकती है?/गुरु शब्द का क्या अर्थ है?🥀⚘🙏🏻
🙏🏻🥀सच्चे गुरु कौन होते है?/क्या सच्चे गुरु की महिमा अपार है?/क्या गुरु बिना मुक्ति मिल सकती है?/गुरु शब्द का क्या अर्थ है?🥀⚘🙏🏻

गुरु गोविन्द दोउ खड़े ,किनके लागूँ पाए। 

बलिहारी गुरु देव की ,गोविन्द दियो बताये।।

ये कहावत जगत भर में प्रसिद्ध है। इस कहावत का अर्थ है कि -यदि आपके सामने गुरु और गोविन्द दोनों खड़े हो तो आप पहले किनके पैरो को स्पर्श करोगे। जाहिर सी बात है --पहले गुरु के ही पैर छुये जाएंगे। क्योकि भगवान् गुरु से बढ़ कर नहीं है। ये बात तो खुद प्रभु श्री कृष्ण ने अपने मुख से कही है की जो मनुष्य गुरु का सम्मान नहीं करता वो  मुझे प्रिये नहीं है ,और ना कभी मेरी भक्ति पा सकता है। क्योकि गुरु बिना शिक्षा नहीं और गुरु बिना मुक्ति नहीं। इसलिए यदि भगवान् को पाना है तो पहले गुरु पूजा और फिर हरी पूजा। गुरु कृपा से ही मुक्ति मिलेगी ,--मुक्ति से ही भगवान। 

अब सवाल आता है कि गुरु किसे बनाये क्योकि वर्तमान में तो अधिकतर लोगो का विश्वास गुरुओ पर से उठा हुआ है। और उनका ऐसा मानना भी गलत नहीं है। क्योकि आजकल के जो गुरु है वो शिष्यों को छोड़ कर धन के पीछे भागने लगे  है।अपने कर्तव्यों को भूल कलयुग की चकाचौंध में खोते जा रहे है। और उनकी इस करनी से जो  अच्छे गुरु ,संत ,महात्मा है।  उन पर से भी विश्वास उठता जा रहा  है। उन्हें कोई भी नहीं पूछता। 

गुरु शब्द का अर्थ

गुरु शब्द दिखने में जितना छोटा है ,इसकी महानता  उससे कही ज्यादा बढ़कर है। गुरु शब्द का - 

पहला अक्षर गु --इसका अर्थ है। अन्धकार 

और दूसरा  अक्षर रु----- इसका अर्थ है प्रकाश 

अथार्त -जो अन्धकार को मिटा के रौशनी तरफ ले के जाए वो होता है गुरु ,जो भटके को रास्ता दिखाए वो होता है गुरु ,जो मन के विकारो को दूर कर अच्छी भावनाओ को जाग्रत करा दे वो होता है गुरु ,जो धरती पर ही भगवान् से मिला दे , उनके होने का आभास करा दे वो होता है सच्चा गुरु। 

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सच्चे गुरु की पहचान 

गुरु महिमा अपार है अधिकतर लोग गुरु को ढूँढ़ते है ,पर जो मन के साफ सच्चे गुरु होते है वो शिष्यों को ढूँढ़ते है। क्योकि उनके अंदर जो शक्तियां होती है  तेज़ होता  है जिसे वो दीक्षा के रूप में अपने शिष्यों को देते है ,वो ऐसे ही किसी को भी नहीं दे सकते। हजारो में कोई एक य्वक्ति ही होता है जिसपे वे अपनी कृपा करते है (दीक्षा देते है )अपितु कल्याण तो वो सभी का करते है। 

सच्चे गुरु के मन में शिष्यों के प्रति अपार प्रेम और दया की भावना होती है। जिस प्रकार एक माँ चाहे उसका बच्चा कितना भी दुराचारी क्यों न हो फिर भी उसके मन में अपने बच्चे के प्रति प्यार कभी कम नहीं होता। वो चाहे खुद भूखी प्यासी क्यों न रहे ,पर अपने बच्चे को कभी भूखा नहीं रखती। 

ठीक ऐसी ही कृपा ,प्यार  और दुलार सच्चे गुरु अपने शिष्यों के प्रति रखते है। उनमे इतनी सामर्थ होती है की वो एकबार जिसे अपना शिष्य मान ले तो वो उसका उद्धार कर देते है। सच्चे गुरु को गुरु बनने का शौक नहीं होता, वो बिना किसी स्वार्थ के लोगों का भला करने में सक्षम रहते है। सच्चे गुरु कभी भी खुद को भगवान से बढ़ कर नहीं बताते (अपितु वास्तव में उनका दर्जा भगवान् से बढ़कर ही होता है तो भी उनके मन में इस बात का ज़रा भी घमंड नहीं होता ) 

ऐसे गुरु,महात्मओं से बचे।

जो गुरु, महात्मा और संत भगवान् की जगह अपनी पूजा करवाना चाहते हो। जो चकाचौंध  में फसें हो और जो शिष्यों को बनाने की भावना रखते हो। संसार में प्रसिद्ध होना चाहते हो।खुद अपनी फीस (धन ) मांगते हो ,वो गुरु- गुरु नहीं बल्कि पाखंडी होते है ऐसे गुरु शिष्यों का तो दूर खुद का भी कल्याण नहीं कर सकते। इसलिए ऐसे गुरुओ से बचे।

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गुरु महिमा अपार।

सच्चे गुरु की कृपा बड़ी कठिन है। गुरु अपनी कृपा सब पर बरसाते है ,पर उन्हें प्राप्त कोई कोई ही कर सकता है।भगवान् की बनाई हुई प्रकर्ति की हर वस्तु सभी के लिए सामान होती है। सर्दी,गर्मी,वर्षा,छाँव,धुप सब पर सामान रूप से पड़ती है। पर हर कोई उनको अपने तरीको से उपयोग में लेता है।

जैसे धरती पर वर्षा सामान रूप से होती है ,पर जिसने जैसा बीज बोया होता है -वैसी ही फसल पाता  है। अथार्त  आम का पेड़ लगाओगे तो आम का ही फल पाओगे,-सेब का नहीं। वैसी ही कृपा संत ,महात्मा और गुरु की सब पर सामान रूप से होती है। जो जैसा चाहे उनसे  वैसा लाभ पा सकता है। 

एक अत्यधिक महत्वपूर्ण बात की सिर्फ गुरु बनाने से ही कल्याण नहीं होता बल्कि उनके उपदेशो को ,बातो को मानने से होता है। गुरु कभी मरते नहीं अथार्त गुरु एक आत्मा की तरह होते है ,जो जीवित रहने पर भी और मरने के बाद भी अपने दिव्य उपदेशो द्वारा जगत में प्रसिद्ध रहते है। 


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बिना गुरु के यदि  भगवान् को पाना हो, तो उनके नाम का जप करना ,उनमे ध्यान लगाना और उनकी सेवा आदि करना -इन बातो का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। लेकिन गुरु सेवा इससे हट कर है। गुरुओ से लाभ पाने के लिए आपको सिर्फ उनकी आज्ञापालन ,सेवा और उनके संग का ही ध्यान रखना पड़ता है। मनुष्य को गुरु के नाम जप और ध्यान करने की कोई आवश्यकता नहीं। यदि कुछ आवश्यक है तो वो है  सिर्फ उनकी आज्ञा का पालन करना और उनके सिद्धांतो को मानना। इतना करना ही सच्चीगुरु पूजा होती है। और वो इससे खुश भी होते है। 

सच्चे गुरुओ को अपने से ज्यादा उनके सिद्धांत प्रिय होते है। इनके लिए वो अपने प्राणो को गंवाने तक की चिंता नहीं करते। सच्चे गुरु की सबसे ख़ास पहचान यही है - की वो खुद की आज्ञा ,पूजन और ध्यान नहीं करवाते, बल्कि उसकी जगह मनुष्य को रामायण ,गीता आदि पवित्र ग्रंथो को पढ़ने के लिए प्रेरित करते है। न की अपनी फोटो को घर और मंदिर में लगाने की सलाह देते है। जो ऐसा करते है वो धोका देने वाले गुरु ,संत होते है। 

आखिर, हम किसी की बात पर क्यों जाए। ये तो व्यक्ति को खुद भी समझना चाहिए की भगवान् की एक अजर ,अमर, दिव्य  मूर्ति की जगह यदि  हम इन मानव शरीरो की फोटो को मंदिर में लागये या गले में लटकाये ,ये कहाँ की समझदारी है। हमारी समझ से तो ये बिलकुल गलत है। बल्कि ऐसा करने से दोष जरूर लगता है। 

भगवान् श्री कृष्ण जी ने गीता में कहा है की ----सच्चे गुरुओ की दृस्टि संसार में समस्त प्राणियों यानी मनुष्यो के लिए उनके हित की होती है। न की उनको अपनी तरफ खींचने की। वो न तो किसी को अपना शिष्य बनाते है ,और न किसी से कुछ लेते है। वो तो हर पल दुसरो के कल्याण के बारे में ही सोचते है। अपने कल्याण के बारे में नहीं। 

जो सच्चे गुरु होते है ,उनके अंदर असंभव को संभव करने की क्षमता होती है ,उनके अंदर ये चार गुण पूर्ण रूप से होते है।शब्द ,स्मरण ,स्पर्श और दृस्टि। इन चार प्रकारो से शिष्यों पर गुरु की कृपा होती है और यही दीक्षा है।इसलिए आप इस बात को जरा ध्यान से समझे। गुरु महिमा अपार है इन चार  उदाहरणों  से आप समझने की कोशिश कीजिये। 

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गुरु में स्थित चार गुण 

🙏🏻🥀गुरु कौन होते है?/क्या गुरु की महिमा अपार है?/क्या गुरु बिना मुक्ति मिल सकती है?/गुरु शब्द का क्या अर्थ है?🥀⚘🙏🏻
🙏🏻🥀सच्चे गुरु कौन होते है?/क्या सच्चे गुरु की महिमा अपार है?/क्या गुरु बिना मुक्ति मिल सकती है?/गुरु शब्द का क्या अर्थ है?🥀⚘🙏🏻

  • शब्द ---कुररी (आकाश में उड़ने वाला एक पक्षी )अपने अंडे धरती पर देती है और खुद आकाश में उड़ते हुए बोलती है.उसकी ये आवाज(शब्द) नीचे रखे अंडो को सुनाई पड़ती है ,जिससे वो पक जाते है। ऐसे ही गुरु भी अपने शब्दों (उपदेशो) से शिष्यों को ज्ञान करा देते है। ये उपदेश ,ये शब्द ही --दीक्षा कहलाती  है। 

  • स्मरण ---कछवी (पानी और धरती दोनों स्थानों में रहने वाला जीव )अपने अंडो को रेत के बहुत अंदर रखती है जो किसी को जल्दी दिखाई नहीं देते। और वो खुद पानी के अंदर रह कर उनको याद(स्मरण ) करती रहती है,उसके इस तरह याद करने मात्र से ही रेत में दबे अंडे पक जाते है। ठीक इसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्यों के बारे में सोचते रहते है ,याद करते रहते है। उनके इस प्रकार सोचने से ही शिष्यों का कल्याण हो जाता है। उनका ये स्मरण करना ही --दीक्षा कहलाती  है। 

  • स्पर्श ---मयूरी चाहे जहाँ भी अपने अंडे दे ,वो हर थोड़ी थोड़ी देर बाद उस पर आकर बैठती रहती हे (स्पर्श करती रहती है ) उसके इस तरह बार -बार स्पर्श करके जाने से ही अंडे पक जाते है। इसी तरह गुरु भी अपने शिष्यों के सिर पर करुणा से हाथ रखते है, जिससे शिष्यों का कल्याण होता है और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति होती है। उनका ये स्पर्श करना ही-- दीक्षा कहलाती  है। 

  • दृष्टि --- मछलियां अपने अंडो को पानी में देती है (इसके अतिरिक्त कही नहीं देती क्योकि जल ही उनका जीवन है )पानी में ही थोड़ी -थोड़ी देर में उनको देखती रहती है। मछली के बार -बार देखने से ही अंडे पक जाते है। ऐसी ही दृष्टि (देखना ) गुरु की होती है, वो शिष्यों को ऐसी कृपा भरी नजरो से देखते है की उनका कल्याण हो जाता है। और  मनुष्यो को अच्छे -बुरे की पहचान हो जाती है  

गुरु महिमा अपार है।इतनी अपार है की -भगवान् ने मनुष्य को  मानव शरीर दिया है।  इसे पाकर मनुष्य अपने कर्मो से स्वर्ग और नरक को प्राप्त कर सकता है और मुक्ति भी पा  सकता है।  लेकिन गुरु , महत्मा और संतो की कृपा से उन्हें स्वर्ग नरक नहीं मिलते केवल मुक्ति ही मिलती है। जिससे भगवान् की प्राप्ति होती है। और इससे बढ़कर क्या किसी और वस्तु  की ज़रुरत  हो सकती है। यदि आपका जवाब हाँ है तो ,आप गलत है। क्योकि धरती पर इंसान का जन्म भगवत प्राप्ति के लिए हुआ है और जब गुरु कृपा से यदि आपको भगवत प्राप्ति हो जाती हो तो मन में कोई और अभिलाषा नहीं होनी चाहिए। 

अतः भविष्य में इस बात का हमेशा याद रखना की या तो आप जीवन मे कोई गुरु न बनाये ,खुद शुद्धता और सच्ची भक्ति के साथ भगवान की आराधना (पूजा -पाठ करें। और अगर गुरु बनाये तो सोच समझ कर बनाये 

प्रिय पाठकों!आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी।इसी के साथ आशुतोष भगवान शिव से आपके जीवन  की मंगल कामनायें करते हुए अपनी बात को यही समाप्त करते है। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी।तब तक के लिए हर-हर महादेव।

धन्यवाद।

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