कृष्ण योग की 10 सीखें
जय श्री कृष्ण 🙏 प्रिय पाठकों, आशा करते हैं कि स्वस्थ प्रसन्नचित्त और श्री कृष्ण की कृपा से परिपूर्ण होंगे।
हम सब ने श्रीकृष्ण को योगेश्वर के रूप में सुना है। पर क्या आप जानते हैं कि कृष्ण का योग केवल साधना या तपस्या तक सीमित नहीं था?
उनका पूरा जीवन ही योग था। जीवन की हर परिस्थिति में सहज रहना, प्रेम देना, समाधान ढूँढना, धर्म निभाना और मन को स्थिर रखना- यह सब मिलकर कृष्ण योग बनाता है।
दोस्तों! आज के तनाव भरे समय में, कृष्ण योग हमें एक ऐसी दृष्टि देता है जो जीवन को सरल, संतुलित और आनंदमय बना सकती है।
आइए श्री कृष्ण की इन 10 सीखों को बहुत आसान भाषा में समझें और जानें कि इन्हें हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में कैसे लागू कर सकते हैं।
![]() |
| योगेश्वर श्रीकृष्ण - जिनका जीवन ही योग, प्रेम और संतुलन का संदेश है। |
1. समत्व - सुख-दुःख में संतुलित रहना
कृष्ण ने अर्जुन से यही कहा- समत्व यानी मन का संतुलन ही योग है।
जीवन में सुख आएगा, दुःख भी आएगा।
लेकिन मन को इन दोनों के झूले में ज्यादा हिलने देना दुख देता है।
जीवन में कैसे लागू करें?
आलोचना हो तो तुरंत टूटें नहीं।
तारीफ़ हो तो घमंड में न आएँ।
किसी स्थिति में भावनाओं से बहने के बजाय शांत होकर निर्णय लें।
संतुलित व्यक्ति सबसे शक्तिशाली होता है।
2. कर्मयोग - काम करते रहिए, परिणाम ईश्वर पर छोड़ दीजिए
कृष्ण कहते हैं -“कर्म करो, फल की चिंता मत करो।”
जब हम फल की चिंता करते हैं, मन तनाव से भर जाता है।
जब हम केवल कर्म पर ध्यान देते हैं, काम बेहतर होता है।
जीवन में उपयोग:
पढ़ाई मेहनत से करें, पर रिजल्ट की चिंता मन पर न बैठाएँ।
नौकरी में काम ईमानदारी से करें।
परिवार के लिए जो कर सकते हैं, प्रेम से करें—बिना अपेक्षा के।
यही कर्मयोग है।
3. अनासक्ति -पकड़ कम करें, प्रेम ज्यादा
कृष्ण सबको प्रेम देते थे, पर किसी पर अधिकार नहीं जताते थे।
यह प्रेम को भार नहीं बनने देता।
जीवन में उपयोग:
रिश्तों में “तुम मेरे हो, इसलिए ऐसा करो” जैसा अधिकार न रखें।
पैसा, स्टेटस या चीज़ें जीवन की खुशी को नियंत्रित न करने दें।
जो जाएगा, जाने दें।
छोड़ना सीख लिया तो मन बहुत शांत हो जाता है।
4. स्वीकार - जिंदगी को वैसी ही स्वीकार करें जैसी वह है
कृष्ण ने अर्जुन से कहा- “युद्ध तो सामने ही है।”
मतलब कि जीवन की लड़ाइयाँ लिखी नहीं जातीं, वे सामने ही खड़ी होती हैं।
जीवन में उपयोग:
किसी परिस्थिति को “क्यों मेरे साथ?” न कहें।
उससे भागने के बजाय स्वीकार करें और समाधान देखें।
स्वीकार से मन हल्का होता है, प्रतिरोध से भारी।
5. करुणा- दूसरों के दुख को महसूस करना ही योग है
कृष्ण का हृदय करुणामय था।
सुदामा, विदुर, ग्वाल-बाल, गोपियाँ- हर किसी के लिए उनके पास जगह थी।
जीवन में उपयोग:
किसी को मुस्कुरा देना भी एक सेवा है।
घर में, कार्यस्थल में, जहाँ संभव हो- मदद करें।
बिना दिखावे के अच्छाई करें।
करुणा मन की सबसे तेज़ साधना है।
6. अपना धर्म पहचानें - जो भूमिका आपकी है, उसे निभाइए
कृष्ण ने अर्जुन से कहा -“तुम्हारा धर्म लड़ना है।”
कहने का अर्थ है-
हर मनुष्य की एक भूमिका है, और वही उसका धर्म है।
जीवन में उपयोग:
विद्यार्थी का धर्म मेहनत से पढ़ना है।
माता-पिता का धर्म बच्चों को स्नेह और संस्कार देना है।
कर्मचारी का धर्म ईमानदारी से काम करना है।
जब व्यक्ति अपने धर्म में स्थिर होता है, जीवन सरल हो जाता है।
7. मन पर अधिकार - भावनाएँ आपकी दासी हैं, मालिक नहीं
कृष्ण हमेशा प्रसन्न और शांत रहे।
उसका रहस्य था- मन पर नियंत्रण।
जीवन में उपयोग:
गुस्सा आए तो 10 सेकंड चुप रहें।
निराशा आए तो तीन गहरी साँसें लें।
मन को कहें-“मैं तुझे चलाऊँगा, तू मुझे नहीं।”
धीरे-धीरे मन एक आज्ञाकारी मित्र बन जाता है।
8. प्रेम - स्वार्थहीन प्रेम ही योग है
कृष्ण का प्रेम साधना था- शुद्ध, निर्मल, पारदर्शी।
राजनीति में हों या युद्ध में- उनका मन प्रेम से भरा रहता था।
जीवन में उपयोग:
रिश्तों में Expectations कम करें।
“किसने क्या दिया?” गिनना छोड़ें।
प्रेम में सहानुभूति और समझ को बढ़ाएँ।
प्रेम से जीवन का हर पहलू सुंदर हो जाता है।
9. समाधान-शक्ति- समस्या नहीं, समाधान देखना सीखें
कृष्ण कभी समस्या पर नहीं अटकते थे।
वे सीधे समाधान ढूँढते थे- राजनीति में हों, युद्ध में हों या जीवन में।
जीवन में उपयोग:
समस्या आने पर खुद से पूछें- “इसका हल क्या है?”
जो बदल सकता है, उसे बदल दें।
जो नहीं बदल सकता, उसे स्वीकार कर आगे बढ़ें।
समाधान सोचने वाला मन हमेशा आगे निकलता है।
10. ईश्वर-अर्पण- सब काम भगवान को समर्पित करके करें
कृष्ण ने कहा-
“जो भी करो, मुझे अर्पित करके करो।”
इसका अर्थ यह नहीं कि हमें कोई बड़ा अनुष्ठान करना है।
इसका सरल अर्थ है-
काम करते समय मन में ईश्वर का भाव रखें।
जीवन में उपयोग:
घर संभालें तो इसे भगवान की सेवा समझें।
काम करें तो इसे अपने धर्म का हिस्सा समझें।
किसी भी काम में ईश्वर भाव जोड़ दें—मन तुरंत शांत हो जाता है।
मित्रों, योगेश्वर कृष्ण केवल योग सिखाते नहीं थे, बल्कि स्वयं उसे जीते थे। उनके विचारों को विस्तार से जानने के लिए भगवान कृष्ण के जीवन दर्शन और 54 प्रमुख उपदेश अवश्य पढ़ने चाहिए।
निष्कर्ष- जीवन ही योग है
कृष्ण योग का अर्थ यह नहीं है कि हम जंगल में जाकर ध्यान करें।
कृष्ण योग सिखाता है कि जीवन को प्रेम, संतुलन, करुणा और समर्पण से जीना ही योग है।
- जब हम बिना किसी अपेक्षा के कर्म करते हैं- वह योग है।
- जब हम परिस्थिति में डगमगाते नहीं- वह योग है।
- जब हम प्रेम से व्यवहार करते हैं- वह योग है।
- और जब हम अपने कर्म भगवान को समर्पित कर देते हैं-
- तभी जीवन का हर कदम “कृष्णमय” हो जाता है।
FAQs – कृष्ण योग की 10 सीखें
1. कृष्ण योग क्या है?
कृष्ण योग का अर्थ है जीवन को संतुलन, प्रेम, कर्म और समर्पण के साथ जीना। यह केवल ध्यान या साधना नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के जीवन में योग को उतारने की कला है।
2. क्या कृष्ण योग केवल साधुओं या संन्यासियों के लिए है?
नहीं। कृष्ण योग गृहस्थ, नौकरीपेशा, छात्र- हर व्यक्ति के लिए है। श्रीकृष्ण ने स्वयं गृहस्थ जीवन में रहकर योग का मार्ग दिखाया।
3. कृष्ण योग की सबसे मुख्य शिक्षा क्या है?
कृष्ण योग की सबसे मुख्य शिक्षा है-
कर्म करो, लेकिन फल के प्रति आसक्त मत हो।
यही जीवन में शांति और स्थिरता लाता है।
4. क्या कृष्ण योग में ध्यान और जप आवश्यक है?
ध्यान और जप सहायक हो सकते हैं, लेकिन अनिवार्य नहीं। कृष्ण योग का मूल है- स्थितप्रज्ञ होकर जीना, यानी हर परिस्थिति में संतुलित रहना।
5. क्या कृष्ण योग आधुनिक जीवन में लागू किया जा सकता है?
हाँ, पूरी तरह।
ऑफिस का काम, परिवार की जिम्मेदारियाँ, रिश्ते निभाना- सब कृष्ण योग का हिस्सा बन सकते हैं अगर उन्हें सही भाव से किया जाए।
6. कृष्ण योग और कर्मयोग में क्या अंतर है?
कर्मयोग कृष्ण योग का ही एक भाग है।
कृष्ण योग में कर्मयोग के साथ-साथ
- प्रेम
- करुणा
- समत्व
- अनासक्ति भी शामिल हैं।
7. क्या अपेक्षा करना कृष्ण योग के विरुद्ध है?
नहीं।
कृष्ण योग अपेक्षा को मना नहीं करता, बल्कि अपेक्षा पर नियंत्रण सिखाता है।
अपेक्षा रखें, लेकिन उसे दुख का कारण न बनने दें।
8. कृष्ण योग मन को शांत कैसे करता है?
जब व्यक्ति फल की चिंता छोड़ देता है,
और हर कर्म ईश्वर को समर्पित भाव से करता है,
तो मन अपने आप शांत होने लगता है।
9. क्या कृष्ण योग से जीवन की समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं?
नहीं! समस्याएँ समाप्त नहीं होतीं, लेकिन समस्याओं को देखने और संभालने की दृष्टि बदल जाती है।
यही कृष्ण योग की सबसे बड़ी शक्ति है।
10. कृष्ण योग अपनाने की शुरुआत कैसे करें?
छोटी शुरुआत करें:
- अपने कर्म को ईमानदारी से करें
- परिणाम पर ज़्यादा न अटकें
- रिश्तों में प्रेम रखें, अधिकार नहीं
- हर दिन थोड़ी शांति अपने भीतर खोजें
- यही कृष्ण योग की सरल शुरुआत है।
प्रिय पाठकों, आशा करते हैं कि पोस्ट l आपको पसंद आई होगी। अपनी राय हमें कमेंट में अवश्य बताएं! ऐसी ही रोचक जानकारियों के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी। तब तक के लिए आप हंसते रहें, खुश रहें और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहें।
धन्यवाद!
जय श्री कृष्ण 🙏

