त्रिपुंड तिलक का रहस्य: भस्म की तीन रेखाओं में छिपा शिव-तत्व और जीवन का सत्य
जय शिव शंकर प्रिय पाठकों 🙏 आशा करते हैं भगवान शिव की कृपा से आप सकुशल होंगे।
मित्रों! हमारे सनातन धर्म में तिलक केवल माथे की सजावट नहीं है, बल्कि यह जीवन-दर्शन का प्रतीक है। जैसे वैष्णव परंपरा में चंदन का तिलक होता है, वैसे ही शैव परंपरा में त्रिपुंड तिलक का विशेष महत्व है। बहुत लोग इसे लगाते हैं, लेकिन इसका वास्तविक अर्थ और गहराई बहुत कम लोग जानते हैं।
आज इस लेख में हम सरल भाषा में समझेंगे- त्रिपुंड तिलक क्या है, क्यों लगाया जाता है, और इसके पीछे छिपा गहरा आध्यात्मिक संदेश क्या है।
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| भस्म की तीन रेखाएँ याद दिलाती हैं कि यह शरीर नश्वर है, और शिव-तत्व ही शाश्वत सत्य है। |
त्रिपुंड तिलक क्या होता है?
त्रिपुंड शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है
त्रि यानी तीन
पुंड यानी रेखा या चिह्न
जब माथे पर भस्म (विभूति) से तीन क्षैतिज रेखाएँ बनाई जाती हैं, तो उसे त्रिपुंड तिलक कहा जाता है। यह तिलक मुख्य रूप से भगवान शिव के भक्तों द्वारा लगाया जाता है।
अक्सर इन तीन रेखाओं के बीच या ऊपर लाल बिंदु लगाया जाता है, जिसे बिंदु या शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
भस्म ही क्यों लगाते हैं?
यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है-
अगर तिलक लगाना ही है, तो चंदन या रोली क्यों नहीं? भस्म ही क्यों?
भस्म का अर्थ है- राख। और राख हमें एक कड़वा लेकिन सच्चा सत्य याद दिलाती है कि- यह शरीर भी एक दिन भस्म हो जाएगा।
भस्म हमें सिखाती है-
- यह संसार नश्वर है
- शरीर अस्थायी है
- अहंकार व्यर्थ है
भगवान शिव स्वयं शरीर पर भस्म धारण करते हैं, क्योंकि वे हमें जीवन का सबसे बड़ा सत्य दिखाते हैं- वैराग्य।
त्रिपुंड की तीन रेखाओं का गहरा अर्थ
त्रिपुंड की तीन रेखाएँ केवल रेखाएँ नहीं हैं, बल्कि जीवन के तीन बड़े बंधनों का प्रतीक हैं।
1. पहली रेखा - अहंकार का नाश
यह रेखा हमें याद दिलाती है कि
“मैं” सबसे बड़ा भ्रम है।
ज्ञान, धन, पद- सब कुछ अस्थायी है।
2. दूसरी रेखा - रजोगुण का शमन
रजोगुण मतलब-
- अत्यधिक इच्छाएँ
- भोग की लालसा
- बेचैनी
यह रेखा संयम और संतुलन का संदेश देती है।
3. तीसरी रेखा - तमोगुण का त्याग
तमोगुण से जन्म लेता है-
- आलस्य
- क्रोध
- अज्ञान
त्रिपुंड की तीसरी रेखा आत्म-जागरण का प्रतीक है।
कुल मिलाकर, त्रिपुंड बताता है-
अहंकार, वासना और अज्ञान से ऊपर उठो।
त्रिगुण और त्रिपुंड का संबंध
सनातन दर्शन कहता है कि यह पूरा संसार तीन गुणों से बना है-
- सत्व
- रज
- तम
त्रिपुंड इन तीनों गुणों को पार करने का संकेत है।
शिव का अर्थ ही है- जो गुणों से परे हो।
इसलिए त्रिपुंड लगाने वाला व्यक्ति यह संकल्प करता है कि- “मैं गुणों के बंधन में नहीं, शिव-भाव में जीना चाहता हूँ।”
त्रिपुंड और तीसरी आँख
माथे का स्थान केवल तिलक लगाने की जगह नहीं है।
यह आज्ञा चक्र का स्थान है, जिसे तीसरी आँख भी कहा जाता है।
त्रिपुंड इसी स्थान पर लगाया जाता है ताकि-
विवेक जागृत हो
चेतना ऊँची उठे
मन भटके नहीं
बीच का लाल बिंदु शक्ति का प्रतीक है,
और तीन रेखाएँ शिव का प्रतीक है।
जहाँ शिव और शक्ति मिलते हैं, वहीं चेतना जागती है।
शास्त्रों में त्रिपुंड का उल्लेख
शिवपुराण, लिंगपुराण और आगम ग्रंथों में त्रिपुंड का विशेष वर्णन मिलता है।
कहा गया है कि-
- त्रिपुंड धारण करने से पापों का क्षय होता है
- शिव-कृपा प्राप्त होती है
- मन स्थिर होता है
लेकिन शास्त्र यह भी कहते हैं-
त्रिपुण्ड केवल माथे पर नहीं, मन पर भी त्रिपुंड धारण करना चाहिए।
आज के समय में त्रिपुंड का संदेश
- आज इंसान बाहरी पहचान में उलझा है,
- दिखावे में जी रहा है,
- अहंकार से भरा है,
त्रिपुंड आज भी उतना ही प्रासंगिक है, क्योंकि यह कहता है-जो अंत में राख होना है, उस पर इतना घमंड क्यों? त्रिपुंड हमें सरल, शांत और सत्य से जुड़ा जीवन सिखाता है।
शिव के इसी गूढ़ स्वरूप को विस्तार से हमने “शिव स्वरूप का महात्म्य (भाग 1 और 2 )” में समझाया है।
यदि आप त्रिपुंड के पीछे छिपे शिव-तत्व को और गहराई से समझना चाहते हैं, तो हमारा लेख “शिव स्वरूप का महात्म्य (भाग 1)” अवश्य पढ़ें।
त्रिपुंड केवल साधुओं के लिए नहीं
यह गलत धारणा है कि त्रिपुंड केवल साधु-संतों के लिए है।
असल में त्रिपुंड हर उस व्यक्ति के लिए है-
- जो जीवन का सत्य समझना चाहता है
- जो अहंकार से मुक्त होना चाहता है
- जो शिव-तत्व से जुड़ना चाहता है
सारांश
त्रिपुंड तिलक कोई फैशन नहीं, कोई पहचान नहीं-
- यह जीवन का दर्शन है।
- यह हमें हर दिन याद दिलाता है
- सब कुछ नश्वर है
- शिव ही शाश्वत हैं
- और मुक्ति का मार्ग भीतर से शुरू होता है
अगर त्रिपुंड केवल माथे पर है, तो वह चिह्न है।
लेकिन अगर त्रिपुंड मन में है, तो वह साधना है।
त्रिपुंड तिलक – FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. त्रिपुंड तिलक किसे लगाना चाहिए?
त्रिपुंड तिलक कोई जाति या वर्ग विशेष का चिन्ह नहीं है। जो भी व्यक्ति भगवान शिव, वैराग्य और आत्मचिंतन से जुड़ना चाहता है, वह इसे लगा सकता है।
2. क्या त्रिपुंड तिलक रोज़ लगाया जा सकता है?
हाँ, त्रिपुंड तिलक रोज़ लगाया जा सकता है। विशेषकर सोमवार, महाशिवरात्रि, सावन मास या शिव-पूजा के समय इसका विशेष महत्व माना गया है।
3. त्रिपुंड में तीन रेखाएँ ही क्यों होती हैं?
ये तीन रेखाएँ अहंकार, रजोगुण और तमोगुण के नाश का प्रतीक हैं। साथ ही यह त्रिगुणों से ऊपर उठकर शिव-तत्व में स्थित होने का संकेत देती हैं।
4. बीच में लाल बिंदु क्यों लगाया जाता है?
लाल बिंदु शक्ति (शक्ति-तत्व) का प्रतीक है। यह बताता है कि जहाँ शिव हैं, वहाँ शक्ति भी है। शिव और शक्ति का मिलन ही पूर्ण चेतना है।
5. क्या त्रिपुंड केवल साधुओं के लिए है?
नहीं। यह एक आम भ्रांति है। गृहस्थ, नौकरीपेशा व्यक्ति, स्त्री या पुरुष- कोई भी श्रद्धा से त्रिपुंड धारण कर सकता है।
6. त्रिपुंड और वैष्णव तिलक में क्या अंतर है?
त्रिपुंड भस्म से बनता है और वैराग्य व शिव-तत्व का प्रतीक है, जबकि वैष्णव तिलक चंदन से बनता है और विष्णु-भक्ति व संरक्षण का प्रतीक माना जाता है। दोनों समान रूप से पवित्र हैं।
और पढ़े-महाकाल के दर्शन के बाद अकाल मृत्यु क्यों नहीं होती?
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हर हर महादेव।🙏

