पूजा-पाठ करने वालों की आखिर बुद्धि क्यों नष्ट हो जाती है?
प्रिय पाठकों,
धर्म और पूजा हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। हम मंदिर जाते हैं, मंत्र पढ़ते हैं, भगवान को फूल और दीप अर्पित करते हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि पूजा-पाठ से इंसान की बुद्धि निर्मल होती है, मन शांत होता है और जीवन में प्रकाश आता है। लेकिन एक सवाल अक्सर लोगों के मन में उठता है—
“कुछ पूजा-पाठ करने वाले लोग समझ से इतने कमजोर क्यों हो जाते हैं? उनकी बुद्धि क्यों नष्ट होती दिखती है?”
आइए इसे सरल भाषा और एक प्रेरक कथा के माध्यम से समझते हैं।
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| पूजा-पाठ तभी सार्थक है जब उसमें भक्ति और सेवा भाव हो। |
पूजा-पाठ का असली उद्देश्य
शास्त्रों में पूजा का अर्थ केवल दीपक जलाना या मंत्र बोलना नहीं बताया गया है। पूजा का वास्तविक उद्देश्य है-
मन को स्थिर करना
अहंकार को मिटाना
भगवान से प्रेम और भक्ति के संबंध को गहरा करना
ज्ञान और विवेक को बढ़ाना
अगर पूजा इन उद्देश्यों को पूरा करती है, तो इंसान का जीवन बदल जाता है। लेकिन अगर पूजा केवल आदत या दिखावे तक सीमित रह जाए, तो उसका असर विपरीत हो जाता है।
क्यों बुद्धि नष्ट हो जाती है?
1. अंधानुकरण
बहुत लोग बिना समझे केवल इसलिए पूजा करते हैं क्योंकि उनके घर में यह परंपरा चली आ रही है। वे मंत्रों का अर्थ नहीं जानते और पूजा का मकसद भी नहीं समझते। ऐसे में पूजा आत्मिक साधना न रहकर बोझ बन जाती है।
2. अहंकार और दिखावा
कुछ लोग पूजा-पाठ को अपनी महानता दिखाने का साधन बना लेते हैं। वे कहते हैं-“मैंने इतने जप किए, इतने व्रत रखे।” लेकिन असली पूजा अहंकार मिटाती है, अहंकार बढ़ाती नहीं। जब पूजा से अहंकार बढ़ता है, तब बुद्धि पर पर्दा पड़ जाता है।
3. भक्ति का अभाव
भगवान गीता में कहते हैं-
“पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।”
अर्थात् भगवान को वस्तु नहीं चाहिए, बल्कि सच्ची भक्ति चाहिए। जब पूजा केवल रस्म बन जाए और उसमें भाव न रहे, तो उसका कोई लाभ नहीं मिलता।
4. ज्ञान और ध्यान की कमी
पूजा-पाठ के साथ ज्ञान और आत्मचिंतन भी आवश्यक है। केवल मंत्र बोलने से बुद्धि तेज़ नहीं होती, बल्कि शास्त्रों को समझना और उनके संदेश पर अमल करना ज़रूरी है।
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एक प्रेरक कथा: भाव रहित पूजा का परिणाम
एक नगर में कृष्णदास नाम का व्यक्ति रहता था। वह हर दिन मंदिर जाकर घंटों पूजा करता। लोग कहते-“यह तो बड़ा भक्त है।”
लेकिन उसकी पूजा केवल बाहरी थी। वह मंत्रों का अर्थ नहीं जानता था और न ही मन से भगवान को याद करता था। उसका उद्देश्य बस यह था कि लोग उसे धार्मिक समझें और उसकी इज्ज़त करें।
एक बार नगर में अकाल पड़ा। लोग भूख से पीड़ित हो गए। सबको लगा कि कृष्णदास जैसे भक्त ज़रूर मदद करेंगे। लेकिन जब लोग उसके पास पहुँचे तो उसने कहा—
“मैं तो पूजा-पाठ में व्यस्त हूँ, मेरे पास तुम्हें भोजन देने का समय नहीं।”
यह सुनकर गाँव के एक संत ने कहा-
“बेटा! तुम्हारी पूजा ने तुम्हारी बुद्धि छीन ली है। भगवान पूजा से ज़्यादा दया और सेवा में रहते हैं। जो भूखे को भोजन नहीं दे सकता, उसकी घंटियाँ और मंत्र केवल दिखावा हैं।”
संत की बात सुनकर कृष्णदास का मन दहल गया। उसे पहली बार समझ आया कि वह केवल रस्में निभा रहा था। उसने उसी दिन से गरीबों की सेवा शुरू की और अपने पूजा-पाठ में सच्चा भाव जोड़ा। धीरे-धीरे लोग भी उसे सच्चा भक्त मानने लगे।
शिक्षा
इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि पूजा-पाठ बुद्धि को नष्ट नहीं करते। बल्कि बिना भाव, बिना समझ और केवल कर्मकांड से की गई पूजा इंसान की सोचने-समझने की शक्ति को संकीर्ण बना देती है।
सच्ची पूजा वही है जिसमें-
- प्रेम और भक्ति हो,
- सेवा और करुणा हो,
- ज्ञान और विवेक हो।
ऐसी पूजा से न केवल मन शुद्ध होता है बल्कि बुद्धि भी तेज़ और निर्मल होती है।
सारांश
तो प्रिय पाठकों, यह याद रखना ज़रूरी है कि पूजा-पाठ केवल रस्म नहीं है। इसका मकसद भगवान से प्रेम करना और मनुष्य की करुणा को जागृत करना है। अगर हम इसे समझदारी और भक्ति से करें, तो यह हमारी बुद्धि को कभी नष्ट नहीं करेगा, बल्कि उसे दिव्य और प्रकाशमय बना देगा।
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FAQs
ज्यादा पूजा-पाठ करने से क्या परेशानियां आती हैं?
जब पूजा-पाठ सीमित समय और सच्चे भाव से किया जाए, तो यह आत्मा को शांति देता है। लेकिन यदि व्यक्ति हर समय पूजा-पाठ में ही डूबा रहे और संसारिक जिम्मेदारियों को भूल जाए, तो यह परेशानी का कारण बन सकता है।
संभावित परेशानियाँ:
- मानसिक थकान और बेचैनी
- परिवार और समाज की उपेक्षा
- अहंकार और श्रेष्ठता का भाव
- अंधविश्वास का बढ़ना
- शरीर पर थकान और असंतुलन
क्या भगवान अधिक पूजा करने से प्रसन्न होते हैं?
उत्तर: भगवान को मात्रा नहीं, भक्ति का भाव चाहिए।
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है —
“पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।”
अर्थात् भगवान सच्चे प्रेम से दी गई छोटी भेंट से भी प्रसन्न होते हैं।
क्या रोज पूजा करना जरूरी है?
उत्तर: हाँ, लेकिन रोज पूजा का अर्थ केवल दीप जलाना नहीं है।
- रोज भगवान को याद करना, अच्छे कर्म करना और आभार व्यक्त करना भी पूजा का ही रूप है।
- भक्ति हृदय में होनी चाहिए, न कि केवल क्रिया में।
अगर पूजा में मन न लगे तो क्या करें?
उत्तर: यह बहुत सामान्य है। मन हमेशा एक जैसा नहीं रहता।
- ऐसे में ज़बरदस्ती पूजा न करें, बल्कि कुछ पल शांत बैठें और भगवान से मन की बात करें।
- धीरे-धीरे मन फिर से जुड़ने लगता है।
क्या ज्यादा पूजा करने से पाप धुल जाते हैं?
उत्तर: नहीं, केवल पूजा करने से नहीं।
- अगर पूजा के साथ सच्चा पश्चाताप और कर्म सुधार हो, तभी पापों का नाश होता है।
- भगवान कर्म, नीयत और परिवर्तन को अधिक महत्व देते हैं।
क्या पूजा-पाठ से जीवन में सफलता मिलती है?
उत्तर: हाँ, अगर पूजा के साथ मेहनत और कर्म जोड़ा जाए तो जरूर।
- भगवान उन पर कृपा करते हैं जो प्रार्थना के साथ प्रयास भी करते हैं।
- सिर्फ पूजा करने से नहीं, बल्कि कर्म से भी सफलता आती है।
क्या महिलाएँ या कामकाजी लोग कम पूजा करें?
उत्तर: नहीं। भगवान को समय की मात्रा नहीं, भावना की गहराई प्रिय है।
- अगर कोई रोज़ 5 मिनट भी सच्चे मन से भगवान को याद करता है, तो वह पूजा पूर्ण मानी जाती है।
- ज्यादा पूजा-पाठ करना बुरा नहीं है, लेकिन बिना संतुलन और समझ के किया गया पूजा-पाठ मन और जीवन दोनों में अशांति ला सकता है।
- सच्ची पूजा वही है जिसमें प्रेम, सेवा और संतुलन हो।

