कामाख्या मंदिर कहाँ पर है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई?

हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे है आप लोग ,हम आशा करते है कि आप ठीक होंगे। आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे कामाख्या मंदिर कहा पर है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? 

कामाख्या मंदिर कहाँ पर है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? 

कामाख्या मंदिर कहा पर है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई?
कामाख्या मंदिर कहा पर है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? 


कामाख्या मंदिर भारत के असम राज्य के गुवाहाटी शहर में नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख शक्तिपीठ है और तांत्रिक पूजा के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। कामाख्या देवी को माता शक्ति का अवतार माना जाता है, और यहां पर देवी की पूजा उनके काम रूप में की जाती है। आइए जानते हैं कि कामाख्या मंदिर की उत्पत्ति कैसे हुई और इसका महत्व क्या है

1. कामाख्या मंदिर का स्थान और विशेषता

कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी शहर के नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर शक्तिपीठों में से एक है और यहां पर देवी की योनि (स्त्री शक्ति) की पूजा की जाती है, जो सृजन और पुनर्जन्म का प्रतीक है। मंदिर के गर्भगृह में देवी की कोई मूर्ति नहीं है; बल्कि वहां एक पत्थर है, जो योनि के आकार का है और इसे पवित्र माना जाता है। यह मंदिर तांत्रिक अनुष्ठानों और साधनाओं का केंद्र है और यहां पर विशेष रूप से दुर्गा पूजा और अंबुबाची मेला मनाया जाता है।

2. कामाख्या मंदिर की उत्पत्ति की कथा

कामाख्या मंदिर की उत्पत्ति की कथा शिव और सती से जुड़ी है। पौराणिक कथा के अनुसार, सती (पार्वती) ने जब अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा शिव का अपमान होते देखा, तो उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया। यह देखकर भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने सती के शव को अपने कंधे पर उठा लिया और तांडव नृत्य करने लगे। यह देखकर सभी देवता चिंतित हो गए और भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। 

3. शक्ति पीठ और योनि की स्थापना

जब भगवान विष्णु ने सती के शरीर को काटा, तो उनके अंग भारत के विभिन्न स्थानों पर गिरे, और ये स्थान शक्तिपीठ कहलाए। ऐसी मान्यता है कि कामाख्या मंदिर में देवी सती की योनि का हिस्सा गिरा था। इसीलिए यह स्थान विशेष रूप से स्त्री शक्ति और सृजन का प्रतीक माना जाता है। यहां देवी को 'कामाख्या' नाम से जाना जाता है, जो 'काम' यानी सृजन और 'अखण्ड' यानी अविनाशी शक्ति का प्रतीक है।

4.कामाख्या मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

कामाख्या मंदिर की स्थापना के पीछे इतिहास और पुराणों में कई संदर्भ मिलते हैं। माना जाता है कि यह मंदिर प्राचीन काल में तांत्रिक साधना और पूजा का प्रमुख केंद्र था। कामरूप क्षेत्र, जहां यह मंदिर स्थित है, तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध था। तांत्रिकों का मानना है कि यहां पर देवी शक्ति की उपस्थिति विशेष रूप से प्रभावशाली है और यहां की पूजा और साधनाओं से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।

5. अंबुबाची मेला और मंदिर की परंपराएं

कामाख्या मंदिर में हर साल अंबुबाची मेला मनाया जाता है, जो देवी की मासिक धर्म चक्र को दर्शाता है। यह मेला तीन दिनों तक चलता है, जब मंदिर के गर्भगृह को बंद कर दिया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि उस समय देवी रजस्वला होती हैं। इसके बाद, मंदिर को खोला जाता है और भक्तों को देवी के प्रसाद के रूप में लाल वस्त्र दिए जाते हैं, जो देवी के मासिक चक्र के दौरान इस्तेमाल किए गए होते हैं। यह परंपरा स्त्री शक्ति, सृजन, और प्रजनन की महत्ता को दर्शाती है।

6. कामाख्या मंदिर का वास्तुकला और संरचना

कामाख्या मंदिर का वास्तुकला असमिया शैली में है, जिसमें एक गुंबद के आकार की संरचना और चार मंडप (छोटे भवन) हैं। मंदिर की संरचना तांत्रिक और पारंपरिक दोनों शैलियों का मिश्रण है। यहां देवी की पूजा तांत्रिक विधियों से की जाती है, और तांत्रिक साधकों के लिए यह स्थान विशेष महत्व रखता है।

निष्कर्ष 

कामाख्या मंदिर असम का एक प्राचीन और पवित्र स्थल है, जो शक्ति, सृजन, और तंत्र साधना का प्रतीक है। इसकी उत्पत्ति सती और शिव की पौराणिक कथा से जुड़ी है, और यह शक्तिपीठ होने के कारण हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है। यहां देवी की पूजा उनके काम और सृजन रूप में की जाती है, जो स्त्री शक्ति और मातृत्व का प्रतीक है।

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तो प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको पोस्ट ,हम आशा करते हैं कि आपकों पोस्ट पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं अगली रोचक, ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी ,तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।

धन्यवाद ,हर हर महादेव 

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