जय श्री कृष्ण!प्रिय पाठकों,कैसे हैं आप लोग,
हम आशा करते है,कि आप सकुशल होंगें।
भगवान श्रीकृष्ण आप पर सदा अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें।
प्यारे दोस्तों आज की इस पोस्ट मे हमने एक ऐसी कहानी लिखी है, जिससे पता चलेगा कि क्या माता-पिता के कर्मों की सजा उनके बच्चों को मिलती हैं, क्या माता-पिता के कर्मों का फल बच्चों को भोगना पड़ता है या नहीं? तो चलिए बिना देरी किए पढ़ते हैं आज की पोस्ट।
एक बार की बात है एक संत और उनका एक शिष्य चलते-चलते एक नगर मे पहुंचे। वह नगर संत जी को बहुत अच्छा लगा। इसलिए उन्होंने अपना डेरा वहीँ नगर के बाहर लगा लिया।
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उस नगर का राजा बहुत ही क्रूर था। वह राजा अपनी प्रजा को बहुत दुख देता था,वह उन पर तरह-तरह के जुल्म किया करता था, उन्हें मारता,पीटता और तो और उनकी मेहनत की कमाई को छीन कर अपने राजकोष मे जमा कर लेता।
क्या माता-पिता के कर्मों की सजा उनके बच्चों को मिलती हैं, |
उसकी प्रजा उससे बहुत दुखी थी क्योंकि वह राजा उन पर तरह-तरह के कर लगा देता था। उस राजा का केवल एक ही बेटा था। और वो अचानक एक दिन बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया। राजा ने सभी वैध, हकिमों को दिखा लिया ,पर कोई फायदा नही हुआ। ब्लकि उसकी हालत इतनी ज्यादा बिगड़ गयी की उसके बचने की कोई उम्मीद न रही।
अब तो राजा बड़ा परेशान हुआ। वह सोचने लगा कि अब मैं क्या करूं? उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। तभी राजा को याद आया कि उसके महल मे एक गिरधर नाम का चित्रकार काम करता है। राजा ने तुरंत अपने सिपाहियों को भेज कर उसे बुलवाया।
जब वह आया तो राजा ने उससे कहा कि, अरे गिरधर ना जाने मेरे बेटे को कौन सी बीमारी ने जकड़ लिया है। सभी इलाज बेकार हो गये। वैध और हकिमों ने भी उत्तर दे दिया है कि, अब ये नही बचेगा। मैं क्या करूं,मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा। यह मेरा इकलौता बेटा है। इसके जाने पर मेरा वंश भी खत्म हो जाएगा। क्या तुम्हारे पास कुछ सुझाव है?
तब गिरधर बोला! महाराज संतों की दुआएं भगवान जरूर सुनता है।क्या मतलब? राजा ने कहा। गिरधर बोला मेरा मतलब है महाराज कि, आप किसी ऐसे संत के पास जाए, जो पूर्ण रूप से संत महात्मा हो और उनसे अपने बेटे के लिए दुआ करने के लिए कहें, क्या पता उनकी दुआएं भगवान सुन लें और राजकुमार बच जाए।
तब राजा ने कहा! हाँ, सही कहा तुमने ,मैं संत के पास जरूर जाऊँगा। लेकिन ये पूर्ण संत कौन होते हैं और कहां मिलेंगे?
तब गिरधर ने कहा महाराज पूर्ण संत भगवान को बहुत प्रिय होते हैं, वह हमेशा आध्यात्म के पथ पर चलते हैं और लोगों का कल्याण करते हैं। लेकिन इतने संतों मे से पता कैसे चलेगा कि कौन पूर्ण संत महात्मा है?राजा ने पूछा।
हाँ महाराज! ये थोड़ा मुश्किल है पर एक उपाय है, भागों सिंह ने कहा। वो उपाय क्या है, राजा ने पूछा? तब भागों सिंह ने कहा महाराज अपने नगर मे जितने भी साधु ,संत,महात्मा है आप उन सभी को बुलवाये और उनसे राजकुमार को ठीक करने के लिए दुआ करने को कहें। जिस संत की दुआ से राजकुमार ठीक हो जाए तो समझिए वही पूर्ण संत महात्मा है।
अब तो राजा ने नगर मे जितने भी संत पुरुष थे, उन सभी को उसने अपने महल मे बुलवाया। जब वह आने के लिए राजी नही हुए तो ,सिपाही उन संतो को बंदी बनाकर ले गए। उन संत पुरूषों मे वह संत भी थे, जिन्होंने नगर के बाहर अपना डेरा डाला हुआ था।
इधर जब उन गुरुदेव जी के साथ रहने वाले शिष्य को य़ह बात पता चली,तो वह भी दौड़ा-दौड़ा महल मे पहुंचा और गुरुदेव जी को बाकी संतों के बीच बैठे देखकर रोने लगा और कहने लगा की यह संसार तो मूर्खों का है,जो पूर्ण संत महात्मा को पहचान नही पाते। और उनको बेवजह परेशान करते हैं।
इतने मे ही गुरुदेव जी बोल उठें, अरे पुत्र! तुम इतने दुःखी क्यों होते हो। ये जो कुछ भी जो रहा है, सब भगवान की मर्जी से हो रहा है। तुम चिंता मत करो। तभी वहां राजा आया और उसने सभी संतों को हुक्म दिया कि चलो, अब तुम सब मेरे बेटे के लिए दुआ करो।
ये सुनकर सभी संत चुप रहे,क्योकि उन्हें राजा का बर्ताव पसंद नही था। तभी गुरुदेव जी राजा से बोले,तुम साधु संतों पर जुल्म करके अपने बेटे के लिए दुआ करने के लिए कह रहे हो, यह लोग दुःखी दिल से तुम्हारे बेटे के लिए दुआ करेंगे।
गुरुदेव जी की बात सुनकर राजा को समझ आया कि उससे कितनी बड़ी भूल हो गई और वो सभी साधु संतों के सामने जमीन पर बैठ गया और कहने लगा कि, मैंने आप लोगो के ऊपर बहुत जुल्म किए हैं। कृपया आप मेरी भूल को क्षमा करे। मैं आपसे हाथ जोड़कर कर विनती करता हूं, कृपा करके आप मेरे बेटे की सलामती के लिए दुआ करें।
गुरुदेव जी ने राजा की बात सुनकर कहा राजन! ये जो कुछ भी हो रहा है, उसे होने दो,क्योंकि इस धरती पर जो कुछ भी होता है, वह भगवान की मर्जी से होता है। उनकी मर्जी के बिना तो एक पत्ता भी नहीं हिलता तुम्हारे बेटे के साथ ये जो कुछ भी हो रहा है,ये सब का सब केवल तुम्हारे कर्मों की वज़ह से हो रहा है।
राजा ने गुरुदेव जी से माफी मांगी और कहा कि, हे गुरुदेव मैं जानता हूँ, मैने बहुत पाप किए हैं, पर मुझे अब इसका बहुत पछतावा हैं। मैं कभी भी किसी को परेशान नहीं करूँगा।
वह गुरुदेव के आगे विनती करते हुए कहने लगा कि हे गुरुदेव!मेरा एक ही बेटा है। आप मेरी भूल को क्षमा करते हुए मेरे बेटे को जीवन दान दे। लोग कहते है कि पूर्ण संतों की दुआओं मे बहुत बल होता है। असंभव को सम्भव करने की शक्ति केवल आप पूर्ण संत मे ही है। कृपया आप मेरे बेटे को ठीक कर दे। मैं सदा आपका आभारी रहूँगा।
जब गुरुदेव ने बाकी संत महात्माओं की तरफ देखा, तो सोचने लगे अगर राजा का बेटा ठीक नहीं हुआ, तो ये इन संतों को नहीं छोड़ेगा, इसलिए अब मुझे कुछ न कुछ तो करना ही होगा। ये सोच कर उन्होंने कुछ देर अपनी आंखे बंद की और फिर कुछ देर बाद आंखें खोली और उन्होंने राजा से कहा कि हे राजन! तेरे बेटे की सलामती संतों के झूठे भोजन मे है।
राजा, जो कि पुत्र की दशा को देखकर दुःखी था, वो बोला कि हे गुरुदेव आप जैसा चाहे वैसा करें, पर मेरे बेटे को ठीक कर दें। तब गुरू देव जी ने एक रोटी मंगवाई। उसमे से आधी रोटी उन्होंने खुद खाई और आधी रोटी राजा के बेटे को खाने के लिए दी।
वह रोटी खाते ही राजा का बेटा एकदम स्वस्थ हो गया। जब राजा ने यह चमत्कार देखा तो वह हैरान रह गया। और समझ गया कि यह कोई साधारण संत नहीं है। ये अवश्य ही पूर्ण संत है। राजा का चित्रकार जिसने राजा को पूर्ण संत लाने की सलाह दी थी, वह भी इस चमत्कार को देखकर डर के मारे कांपने लगा। वहां मौजूद बाकी के सभी संत महात्मा भी ये चमत्कार देखकर हैरान रह गए।
अब तो राजा गुरुदेव जी के चरणों मे गिर गया और अपने द्वारा किए गए बुरे कर्मो के लिए माफ़ी मांगने लगा। उसने कहा हे गुरुदेव!मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई जो मैंने आपका अपमान किया।
गुरुदेव बोले! नहीं राजन तुमने मेरा नहीं,इन साधु संतों का अपमान किया है, अपनी इस भोली-भाली प्रजा का अपमान किया है। तुमने अपनी शक्ति के बल पर इनके हक की कमाई खाई है। तुम्हारे नगर की प्रजा मेहनत करके अपने परिवार का पेट पालती है और तुम उनकी मेहनत की कमाई को लूट लेते हो।
हे राजन! जरा इन उड़ते पक्षियों को देखो,जो भगवान पर भरोसा रखते हैं और अपनी मेहनत का खाते हैं। और यही कारण है कि ये हमेशा खुश रहते हैं और चहचहाते रहते हैं।
राजन! बेईमानी से कमाया हुआ धन सबसे बड़ा हराम होता है और यही हराम की कमाई तुम अपने पुत्र को भी खिलाते हो। इसलिए इसके साथ जो कुछ भी हो रहा है, वो सब तुम्हारे बुरे कर्मों की वजह से ही रहा है।
राजा ने गुरुदेव के पैर पकड़ लिए और कहने लगा - हे गुरुदेव मैं अपनी गलती को कैसे सुधारू,मैं किस प्रकार अपने आप को बदलूँ ,कृपया आप मुझे कोई उपाय बताये, मैं अपनी गलतियों का पश्चाताप करना चाहता हूं।
गुरुदेव बोले कि, हे राजन! यदि तुम सचमुच अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहते हो तो, तुम मुझसे ये वादा करो की आज के बाद तुम किसी पर कोई अत्याचार नहीं करोगे, हमेशा दूसरों की मदद करोगे, तुम हमेशा अपनी मेहनत की ही कमाई से ही अपने परिवार को पालोगे और दूसरों का जितना भी धन तुमने लुटा है, वो सब तुम उन्हें वापस कर दोगे।
राजा ने कहा हे गुरुदेव ! मैं आपसे वादा करता हूं कि, जैसा आपने कहा है, मैं वैसा ही करूँगा। आज के बाद मैं किसी पर कोई अत्याचार नहीं करूँगा, दूसरों की मदद करूंगा ,खुद मेहनत करके ही अपने परिवार को खिलाऊँगा और दूसरों का पैसा भी लौटा दूँगा ।
उस दिन के बाद राजा ने कभी किसी पर कोई अत्याचार नहीं किया। उसने अपने जीवन को पूरी तरह से बदल लिया। अब वह अपनी प्रजा को बिल्कुल अपने बच्चे की तरह ही समझने लगा। गुरुदेव के जाने के बाद उसने सभी का लुटा हुआ धन और कर सब लौटा दिया था। उस दिन के बाद से राजा के नगरवासी निश्चिंत हो कर रहने लगे और राजा को दुआएं देने लगे।
मित्रों! इस कहानी से सीख मिलती है कि मनुष्य को केवल खुद मेहनत करके ही खाना चाहिए। दूसरों का हक छीन कर अपने घर को खुश रखने से कभी भी घर बस नहीं सकता। हमेशा इंसान को अच्छे कर्म ही करने चाहिए क्योंकि कर्मो का फल इंसान को भोगना ही पड़ता है।
यदि कर्म अच्छे होंगे ,तो फल भी अच्छे ही मिलेंगे और अगर कर्म बुरे हुए तो, उसका फल भी बुरा ही मिलेगा,जिसका परिणाम हमारे साथ साथ हमारे बच्चों को भी भोगना पड़ सकता है। इसलिए अगर हम ये चाहे की हमारे बच्चे हमेशा खुश रहें, तो हमे हमेशा अच्छे कर्म ही करने चाहिए।
तो प्रिय पाठकों,ये थी आज की कहानी, आशा करते हैं कि आपको कहानी पसंद आई होगी। इसी के साथ विदा की है, अगली कहानी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी। तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, आप हंसते रहें, मुस्कराते रहें और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहें।
धन्यवाद