प्रिय पाठकों ! इस कहानी के जरिए आपको ईश्वर से अवगत कराना है। इस कहानी में बताया गया है कि ईश्वर कहीं बाहर नहीं है ,बल्कि वो तो हर मनुष्य के अंदर है। दया ,करुणा ,प्रेम ,सहानुभूति आदि ये सब ईश्वर के ही गुण है ,इसलिए इन सभी गुणों को हर मनुष्य को अपने अंदर विकसित करना चाहिए। तो आइये कहानी पढ़ना शुरू करें।
एक बार की बात है। रूस के एक गाँव में एफिम और एलिशा नाम के दो व्यक्ति रहते थे। वो दोनों वृद्ध थे और एक दूसरे के बहुत ही पक्के दोस्त थे।
एफिम बहुत ही गंभीर तथा विचारशील व्यक्ति था। उसका परिवार भी बहुत बड़ा था। वह अपने परिवार से बहुत ज्यादा प्यार करता था। और उनकी देखभाल बड़े अच्छे तरिके से करता था। उसके परिवार के लोग उससे बहुत खुश रहते थे। वह काफी धनवान था और हर समय किसी न किसी काम में व्यस्त रहता था।
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एलिशा बड़े दयालु स्वभाव का था। उसकी ईश्वर में बहुत प्रीति थी तथा वह हमेशा खुश रहता था। वह न तो धनवान था और न ही निर्धन। वह मधुमक्खियाँ पालकर अपने परिवार का पालन -पोषण करता था।
एक बार दोनों मित्रो ने तय किया कि वे एक साथ योरुसलम (तीर्थ स्थल )की यात्रा करेंगे। एलिशा तो हर समय तैयार रहता था। पर एफिम को काम में व्यस्त रहने के कारण समय नहीं मिलता था। एलिशा उसे बार -बार तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए ध्यान दिलाता ,पर एफिम उसे अपनी व्यस्तता बता कर चलने से इंकार कर देता।
एक बार एलिशा ने बहुत ज़िद की ,तो एफिम तैयार हो गया। अगले दिन एफिम ने अपने पुत्र को सभी काम अच्छे से समझा दिए और तीर्थ पर जाने के लिए अपने साथ बहुत सारा धन रख लिया। इधर एलिशा ने अपनी सारी चिंता परिवार वालो को सौंप दी। और तीर्थ जाने के लिए तैयार हो गया। एलिशा का मन पूरी तरह से शांत था। लेकिन एफिम का मन बिलकुल भी शांत नहीं था। उसे हर पल अपने परिवार की चिंता लगी रहती थी।
दोनों मित्र चलते -चलते एक गांव में पहुंचे। उन्होंने देखा की उस गांव में काफी समय से वर्षा न होने के कारण त्राहि -त्राहि मची हुई थी। लोगों के घर टूटे -फूटे पड़े थे। इधर -उधर भूख से तड़प-तड़प कर लोग दम तोड़ रहे थे। रात होने के कारण वो दोनों एक झोपडी की ओर चले।
जब वे झोपडी के द्वार पर पहुंचे ,तो उन्हें अंदर से लोगो की चीख पुकार सुनाई दी। उन्होंने दरवाजा खटखटाया पर दरवाजा नहीं खुला। जब दरवाजा नहीं खुला तो एलिशा ने बहुत ज़ोर से दरवाजे को धक्का दिया ,तो वह खुल गया।
एलिशा ने अंदर जाकर देखा तो वह सन्न रह गया। घर का हाल बड़ा की कारुणिक था। ज़मीन पर एक स्त्री मरने की स्थति में पड़ी थी। एक बच्चा चारपाई पर बैठा हुआ रोटी -रोटी चिल्ला रहा था। तभी एक आदमी लड़खड़ाता हुआ आया और धड़ाम से जमीन पर गिर गया। एलिशा ने अपने थैले में से एक रोटी निकाली और बच्चे को दी।
बच्चा इतना भूखा था की वह देखते ही देखते रोटी चट कर गया। एलिशा ने उसे एक रोटी और दी। फिर उसने उस स्त्री और पुरुष को भी दो दो रोटियां दी। उसके बाद वो कुएँ से पानी भरकर लाया और तीनो को पिलाया।
इधर एफिम झोपडी के बाहर बैठा हुआ एलिशा का इंतज़ार कर रहा था। बहुत देर होने पर उसने एलिशा को अपने पास बुलाया और कहने लगा कि क्या हम आज रात इस बदबू भरी झोपडी में बिताएंगे? यहां तो इस सारे गांव का हाल ही बुरा है। आओ,अब यहाँ से चले। रात आगे किसी गाँव में गुज़ार लेंगे। यहाँ समय नष्ट करना ठीक नहीं है।''
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एलिशा तुरंत अपने मित्र के मन की बात समझ गया। उसने कहा ''मित्र! आप चलो। मैं इन लोगो को इस हाल में छोड़कर योरुसलम नहीं जा सकता। मैं कुछ दिन यही रुकूंगा। यह सुनकर एफिम को बड़ा आश्चर्य हुआ। पर वह एलिशा के स्वभाव को बहुत अच्छे से जानता था। इसलिए वह अकेला ही येरुसलम के लिए चल पड़ा।
एलिशा वही रुक गया और उस घर के लिए जरूरत की सभी चीजे अपने पास से ही खरीद के ले लाया। क्योकि घर में कुछ भी नहीं था। घर के सदस्य पेट भरने के लिए एक एक करके घर की सब चीजे बेच चुके थे।
उस घर में रहते एलिशा को काफी समय बीत गया। कभी कभी तो एलिशा को लगता कि,उसे तीर्थ पर चले जाना चाहिए। लेकिन उन लोगो की दशा देखकर उसका मन भर आता था। इसलिए वह तीर्थ पर नहीं जाता था।एलिशा की सेवा से धीरे धीरे उन लोगो में फिर से शक्ति आ रही थी। एलिशा ने उन लोगो के दूध पीने के लिए एक गाये खरीदी और उनका खेत जोतने के लिए एक घोड़ा खरीदा।
साथ ही फसल आने तक उनके लिए बहुत सा अनाज खरीद के रख दिया।अब तो उसके रूपये भी खर्च हो चुके थे। इसलिए उसने तीर्थ जाने का विचार छोड़ दिया।
एक दिन जब सब लोग गहरी नींद में सो रहे थे। तो वह चुपचाप उठकर अपने घर चला गया। घर पहुंचने पर परिवार और गांव के लोगो ने पुछा कि ,आप तीर्थ से इतनी जल्दी कैसे आ गए ?
और एफीम कहा है ? एलिशा ने उन लोगो से कहा ईश्वर नहीं चाहता था ,कि मैं वहां जाऊं। रास्ते में ही मेरे सारे पैसे ख़तम हो गए। इसलिए मैं एफीम के साथ नहीं गया और लौट आया।
उधर एफीम तीर्थ पहुंचकर प्रार्थना करने के लिए गिरजाघर में गया, तो वहां बहुत भारी भीड़ थी और उसे हर समय यही डर लग रहा था, की कही कोई उसकी जेब ना काट ले। इसलिए प्रार्थना में उसका मन नहीं लग रहा था।
गिरजाघर के अंदर छत्तीस दीपक जल रहे थे। और वहां किसी भी तीर्थ यात्री को जाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन वही दीपको की रौशनी के पीछे उसको एलिशा की झलक दिखाई दी। तो वह हैरान हो गया , वह सोचने लगा की एलिशा तो गांव में है, वो यहाँ कैसे हो सकता है ?
उसने दोबारा फिर देखा ,तो भी उसको वही झलक दिखाई दी। उसे विश्वास हो गया की ये एलिशा ही है। उसने सोचा उसका मित्र भाग्यशाली है , और उसे इस बात की ख़ुशी हुई की कल मैं भी अपनी मित्र की सहायता से गिरजाघर के भीतरी भाग में पहुंच सकूँगा।
जब प्रार्थना समाप्त हुई तो भीड़ इधर उधर बढ़ने लगी। एफीम ने फिर अपनी जेब में हाथ डालकर देखा की कही उसकी जेब कट तो नहीं गयी। जब एफिम बाहर आया तो उसे उसका दोस्त एलिशा कही दिखाई नहीं दिया।अगले दिन जब वो दोबारा गिरजाघर में गया ,तो उसने देखा की दीपको के पीछे उसका अपना मित्र पादरी की तरह हाथ फैलाये हुए खड़ा है । लेकिन प्रार्थना समाप्त होने के बाद वो फिर गायब हो गया। इस तरह से तीन सप्ताह बीत गए । तीन सप्ताह बीतने के बाद एफिम अपने घर की और चल दिया। रास्ते में वो फिर उसी झोपडी में पहुँचा जहां वो एलिशा को छोड़ के आया था।
झोपडी के बाहर दरवाजे पर एक बूढ़ी औरत बैठी थी। वह उसको देखकर बोली ,आईये !बाबा हमारे यहाँ रुकिए और भोजन कीजिये। हम हमेशा अपने यहाँ यात्रियों का स्वागत करते है। एक यात्री ने ही हमारे प्राणो की रक्षा की थी। एफीम तुरंत समझ गया की वह स्त्री एलिशा के बारे में ही बात कर रही है। उसने उस स्त्री से एलिशा के बारे में पूछा ,तो उसने कहा ,की मैं नहीं जानती कि वो कौन था। मनुष्य था या कोई देवता ? यदि वह यहां न आया होता तो ,हम सब मर चुके होते।
उसने हम सबकी बड़ी सेवा की। वह हम लोगों से बहुत करता था। वो देवता स्वरुप हमे अपना नाम बिना बताये ही चुपचाप यहां से चला गया। भगवान् उस का भला करे। एफीम उस रात वही रुका ,पर उसे रातभर नींद नहीं आई। वो बस अपने दोस्त एलिशा के बारे में ही सोचता रहा। उसे अच्छी तरह याद आ रहा था ,कि उसने योरुसलम के गिरजाघर के भीतरी भाग में एलिशा को ही देखा था और वह यह भी अच्छी तरह से जानता था की वो एलिशा को इसी झोपडी में छोड़ कर गया था। और एलिशा यहीं से वापस लौट गया।
एफिम बड़े असमंजस में था , उसे लगने लगा की ईश्वर ने एलिशा की तीर्थ यात्रा स्वीकार कर ली ,,लेकिन मेरी तीर्थ यात्रा स्वीकार नहीं हुई। सुबह होते ही एफिम अपने घर के लिए निकल पड़ा। और गांव पहुंच कर सबसे पहले वह अपने दोस्त के पास गया। एलिशा ने अपने दोस्त को देखते ही उसका स्वागत किया ,उसे गले लगाया। फिर एफिम से कहा कि ,आशा है -आपकी तीर्थ यात्रा अच्छे से पूरी हो गई होगी।
एफिम ने फिर दुबारा से एलिशा को गले लगा लिया और बोला -मित्र !मेरा शरीर तो वहां अवश्य पहुंच गया, पर शायद मेरी आत्मा वहां तक नहीं पहुंची सकी। लेकिन मुझे इस बात का पूरा विश्वास है और ख़ुशी है कि तुम्हारी आत्मा वहां अवश्य पहुंच गई। क्योकि मैने खुद तुम्हे अपनी आँखों से गिरजाघर-
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के भीतरी भाग में दीपकों के पीछे खड़ा देखा था। एक सच्चे तीर्थयात्री तो तुम्ही हो। और ईश्वर के प्रिय भक्त भी। अब इस बात को मैं भी बहुत अच्छे से समझ गया हूँ कि मनुष्य की सेवा करना ही ईश्वर की सच्ची सेवा करना है ,और मुसीबत में पड़े दीन -दुखियों की सहायता करना ही सच्ची तीर्थयात्रा है।
तो प्रिय पाठकों ! आप भी इस बात को अच्छे से समझ गए होंगे की सच्ची भक्ति ,सच्चा तीर्थ ,सच्ची पूजा क्या होती है। इसलिए आप भी एलिशा की तरह दीन -दुखियों की सेवा कीजिए और धरती पर रह कर ही ईश्वर को प्राप्त कीजिए। इससे अच्छा और कोई सुनेहरा अवसर नहीं है।
हम आशा करते है कि आपको कहानी पसंद आई होगी और भगवान् भोलेनाथ जी से प्रार्थना करते है की वो आपको जीवन में इतना (धन -संपत्ति )दें कि आप हर प्रकार से दीन -दुखियों की सेवा कर सकें। इसी के साथ विदा लेते है। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाक़ात होगी।
धन्यवाद।