श्री गणेशाय नमः
हर हर महादेव -प्रिय पाठकों
भोलेनाथ का प्यार व आशीर्वाद हमेशा आपको प्राप्त हो।
इस पोस्ट मे आप पायेंगे-
क्रोध क्या है?
क्रोध से जीवन पर पड़ने वाला असर
क्रोध के दो रूप
क्रोध ज्ञान विवेक को खो देता है।
क्रोध से बचने का उपाय
दोस्तों ! घर के सभी सदस्य परेशान रहे, ये तो अच्छी बात नहीं है।माना की क्रोध पर किसी का बस नहीं चलता। पर कोशिश करे ,तो असंभव भी नहीं है। हल्का -फुल्का गुस्सा आये, तो चलता है ,ठीक है ,कोई बात नहीं। पर यदि ये जरूरत से ज्यादा आने लगे तो समझ लेना चाहिए की क्रोधी व्यक्ति खुद अपने जीवनरस का हनन कर रहा है। (जीवन का अंत करना ,खुशियों को बर्बाद करना )क्रोध हृदय पर बहुत जल्दी असर डालता है। जिससे व्यक्ति अपने ज्ञान विवेक को खो देता है और जाने -अनजाने उससे कई प्रकार की गलतियाँ हो जाती है।
क्रोध क्या है?
दोस्तों ! क्रोध ,क्रोध एक ऐसा शख्श ,ऐसा प्राणी जो बिलकुल एक बिन बुलाये मेंहमान की तहर होता है। क्या आपको ऐसा नहीं लगता ? ये क्रोध रुपी प्राणी जब किसी के भी जीवन में अपना आगमन करता है ,तो जीवन की काया पलट कर रख देता है।
क्रोध से जीवन पर पड़ने वाला असर
क्रोध ये शब्द जितना छोटा है इसका असर उससे कहीं ज्यादा बढ़कर। इसका असर पड़ते ही जीवन एकदम नीरस हो जाता है। दोस्तों !यदि किसी से कहा जाय की दुखी मत होओ ,क्रोध मत करो। तो ये सम्भव नहीं है, क्योकि क्रोध पर तो किसी का भी बस नहीं चलता। ये तो जब आना होता है ,आ ही जाता है। और इसके असर से सिर्फ क्रोधी व्यक्ति ही नहीं बल्कि घर के अन्य सदस्य भी इससे परेशानी में आ जाते है। चिंता में पड़ जाते है ,दुखी होते है,परेशान होते है। वो कहते है न एक अनार सौ बीमार। बिलकुल वही स्थिति,की क्रोध एक करें और भुगतना सभी को पड़े।
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क्रोध धैर्य का बहुत बड़ा दुश्मन होता है। ये बिलकुल उस आंधी तूफान की तरह होता है की जब ये आते है तो इनके अलावा किसी और की बात नहीं सुनाई देती। ठीक इसी प्रकार क्रोध आने पर शुभचिंतक की अच्छी बाते भी नहीं सुनाई पड़ती। क्रोधी को हर व्यक्ति और उसकी बातें बुरी लगती है। इसलिए ऐसी आंधी के समय बाहर से सहायता मिलना असंभव है। यदि कुछ सहायता मिल सकती है ,तो भीतर से ही मिल सकती है। इसलिए उचित है की हम पहले से ही विवेक ,विचार और चिंतन को अपने ह्रदय में संजोकर रखे। ताकि क्रोध रुपी आंधी के समय हम अपने भीतर से ही सहायता ले सकें।
जब कोई नगर किसी बलवान शत्रु के द्वारा घेर लिया जाता है ,तब उस नगर में बाहर से कोई वस्तु नहीं आ सकती। जो कुछ भीतर होता है वही काम आता है। क्रोध में अंधे होने पर बाहरी सहायता नहीं मिल सकती। इसलिए मन में अच्छे विचार और अच्छी सोच को संजोकर रखे। ये इतना आसान नहीं है क्योकि क्रोध इतना बुरा रोग है कि वह सुविचार यानी अच्छे विचारों को जड़ से नष्ट करने की कोशिश करता है। यह तो ज़हर से भी ज्यादा हानिकारक है क्योकि क्रोध के नशे में उसे भले -बुरे का ज्ञान नहीं रहता।
क्रोध के दो रूप
क्रोधी व्यक्ति से सभी यहां तक की सगे सम्बन्धी भी कतराने लगते है। क्रोधी व्यक्ति बात -बात पर ,प्रत्येक घटना पर और प्रत्येक मनुष्य पर ,बिना कारण अथवा बहुत ही छोटे कारण से बिगड़ जाता है। यदि क्रोध का कारण बहुत बड़ा हुआ,तो वह उग्र रूप धारण करता है। और ,यदि कारण छोटा हुआ तो चिड़चिड़ाहट तक ही नौबत आती है। इस प्रकार से दोस्तों ! क्रोध के दो रूप होते है। प्रचंड और उपहासजनक। और ये दोनों प्रकार से बुरा ही होता है।
क्रोध मनुष्य के शरीर को भयानक कर देता है,आँखों को विकराल कर देता है ,चेहरे को आग के समान लाल कर देता है ,बातचीत को बहुत ही उग्र कर देता है। इस प्रकार क्रोध न तो मनुष्यता का चिन्ह है और न ही स्वभाव के सरल या आत्मा के शुद्ध होने का परिचायक। वास्तव में क्रोध भीरुता (कायरता ) अथवा मन की क्षुद्रता (नीचता ) की निशानी है। जो लोग क्षुद्र है ,उन्ही को क्रोध शोभा देता है। ज्ञानी ,उदार और सत्पुरुषों को नहीं। क्रोध में मनुष्य अपने आप को भूल जाता है। उसकी सोचने की क्षमता कम हो जाती है। और वह बातचीत करने में कुछ का कुछ कहने लगता है।
क्रोध में मनुष्य घटना के कारण की जांच करने के बजाय व्यर्थ झगड़ा करने लगता है। जिनको भगवान ने प्रभुता दी है ,उनको क्रोध घमंडी बना देता है। उपदेश और शिक्षा को बेअसर कर देता है। कृपापात्र तक को दवेषी बना देता है। क्रोध के कारण दुसरो को चाहे जितना भी क्लेश मिले ,लेकिन जिस मनुष्य को क्रोध आता है उसी को सबसे अधिक दुःख मिलता है। उसी का सबसे ज्यादा नुकसान होता है।
क्रोध ज्ञान विवेक को खो देता है।
दोस्तों ! घर के सभी सदस्य परेशान रहे, ये तो अच्छी बात नहीं है।माना की क्रोध पर किसी का बस नहीं चलता। पर कोशिश करे ,तो असंभव भी नहीं है। हल्का -फुल्का गुस्सा आये, तो चलता है ,ठीक है ,कोई बात नहीं। पर यदि ये जरूरत से ज्यादा आने लगे तो समझ लेना चाहिए की क्रोधी व्यक्ति खुद अपने जीवनरस का हनन कर रहा है। (जीवन का अंत करना ,खुशियों को बर्बाद करना )क्रोध हृदय पर बहुत जल्दी असर डालता है। जिससे व्यक्ति अपने ज्ञान विवेक को खो देता है और जाने -अनजाने उससे कई प्रकार की गलतियाँ हो जाती है।
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जैसे एक बवंडर के आने के बाद शहर की जो दुर्दशा दिखाई पड़ती है,ठीक वैसे ही क्रोध से होने वाली दुर्दशा , हानि हर क्रोधी के घर में दिखाई पड़ती है। न तो उस घर में किसी के आने-जाने का मन करता है। और न उस क्रोधी व्यक्ति से कोई मित्रता ही करता है ,न उसकी बात का कोई विश्वास करता है।
शरीर के रोगों को लेकर हमे शारीरिक अव्यवस्था को दोषी मानने की आदत हो गई है अथार्त दवा लेने से ही रोग मिटेगा ऐसी सोच हो गई है। रोगों का मूल कारण आंतरिक दोष है और ये सत्य स्वीकारने को हम बिलकुल भी तैयार नहीं है। क्रोध ,ईर्ष्या आदि जो ये दोष है ,इन दोषो के आवेग मनुष्य के कोमल ज्ञानतंतुओं को जितनी हानि पहुंचाते है ,उससे अधिक हानि किसी और कारण से नहीं होती।
क्रोध से बचने का उपाय
शांत ,सरल और स्वस्थरूप से गति कर रहे ज्ञानतंतु (नस ,ऊर्जा ,तेज़ और बल )आंतरिक दोषों के कारण बहुत जल्दी छिन्न -भिन्न हो जाते है। उसका असर समग्र (पूरे ) शरीर पर पड़ता है। जिस तरह मनोबल को शरीर के स्वास्थ्य का केंद्र माना गया है ,ठीक वैसे ही पक्की ,मजबूत परमात्मनिष्ठा मनुष्य के आंतरिक स्वास्थ्य का मेरुदंड है। ये दोनों मिलकर मनुष्य की कार्यशक्ति को कई गुणा बढ़ा देते है। जिसके कारण मनुष्य सद्गुणों को प्राप्त करता है जैसे -वेदादि सत्शास्त्रो में श्रद्धा रखने लगता है ,सत्पुरुषों में उसकी प्रीति बढ़ने लगती है ,विधिनिषेध का पालन (कोई काम करने या न करने का शास्त्र युक्त पालन ) करने लगता है और उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होने लगती है।
इन सभी सद्गुणों के बीच व्यक्ति खुद को सुरक्षित शांत व सुखी महसूस करने लगता है। इसलिए क्रोध से बचने के लिए हमे चाहिए की हम अपने मन में पहले द्रढ़ता से यह प्रण ले कि हम उस दिन क्रोध नहीं करेंगे ,चाहे हमे कितनी ही हानि क्यों न हो। इस प्रकार हमे प्रण करके हमेशा तैयार रहना चाहिए।
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एक दिन बहुत नहीं होता। यदि हम एक दिन भी क्रोध को जीत लेंगे ,तो दूसरे दिन फिर वैसा ही प्रण करने के लिए प्रण करना उचित है। इस प्रकार करते -करते क्रोध न करने का स्वभाव पड़ जाएगा। जिसने क्रोध को जीत लिया ,उसके लिए जीवन के कठिन से कठिन काम करना भी सरल हो जाएगा।
नोट
क्रोध को बिलकुल पूरी तरह से छोड़ देना भी अच्छा नहीं है। किसी को बुरा काम करते देख उसे पहले मीठे शब्दों में समझाना चाहिए।
यदि समझाने से वह उस काम को न छोड़े ,तो उस पर क्रोध करना भी ठीक है। जिस क्रोध से अपने कुटुम्बियों ,अपने इष्ट मित्रों अथवा दुसरे का आचरण सुधरे ,ईश्वर में पूज्य बुद्धि उत्पन्न हो ,दया , उदारता और परोपकार में प्रवृत्ति हो ,तो ऐसा क्रोध बुरा नहीं है।
प्रिय पाठकों!आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी।आप अपने विचार,अपनी राय हमसे शेयर कर सकते हैं।इसी के साथ अपने शब्दों को समाप्त करते हुए ,हम प्रार्थना करते है की भगवान् भोलेनाथ आपको विवेक ,सुविचार व सद्गुण प्रदान करें। क्रोध आपके नजदीक भी न आये। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी।तब तक के लिए हर-हर महादेव।
धन्यवाद।